Himachal: समय पर पेंशन नहीं मिलने से HRTC पेंशनरों की दवा और खर्च चलाना हुआ मुश्किल

हिमाचल पथ परिवहन निगम (HRTC) से 35 से 40 साल सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त हुए पेंशनर आज जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। पेंशन समय पर न मिलने के कारण उन्हें दवाइयों की खरीद और घर का खर्च चलाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश के लगभग 8,500 पेंशनर पिछले कई महीनों से पेंशन के इंतजार में हैं, जो हर महीने की पहली तारीख को मिलनी चाहिए लेकिन 16 से 21 तारीख के बीच मिल रही है। यह स्थिति तब है जब पेंशन पर आश्रित 70% से अधिक पेंशनर पूरी तरह उसी आय पर निर्भर हैं। विडंबना यह है कि पेंशनरों की समस्याओं को लेकर वे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से बीते दो वर्षों में 10 से 12 बार मिल चुके हैं, लेकिन समय पर पेंशन देने के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

निगम से सेवानिवृत्त हुए इन पेंशनरों में से अधिकतर गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं। हिमाचल पथ परिवहन पेंशनर कल्याण संगठन और पथ परिवहन कल्याण मंच के अनुसार करीब 70 प्रतिशत पेंशनर मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग और प्रोस्टेट जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं। हर महीने इन पेंशनरों को दवाइयों पर 5,000 से 6,000 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन समय से पेंशन न मिलने के कारण वे ये दवाइयां समय पर नहीं खरीद पाते, जिससे उनकी स्थिति और खराब हो रही है।

शिमला के घनाहट्टी क्षेत्र में रहने वाले पेंशनर ईश्वर सिंह की स्थिति बेहद दुखद है। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें बीमारी के कारण दोनों टांगों से हाथ धोना पड़ा और अब वह मधुमेह से भी ग्रस्त हैं। इतना ही नहीं, एक आंख की रोशनी भी चली गई है। उनका बेटा निजी नौकरी करता है और सीमित आय के चलते पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ है। ईश्वर सिंह का कहना है कि उन्होंने वर्षों तक निगम की सेवा की, लेकिन अब जब उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है, तब सरकार और निगम समय पर पेंशन देने में नाकाम साबित हो रहे हैं।

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स्थिति और भी गंभीर तब हो जाती है जब पेंशनरों को अस्पताल में इलाज की जरूरत होती है। पहले हिमकेयर योजना के तहत सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों को मुफ्त इलाज की सुविधा मिलती थी, लेकिन अब सरकार ने यह सुविधा भी बंद कर दी है। इससे पेंशनरों को अब अस्पताल में इलाज के दौरान दवाइयों और ऑपरेशन से जुड़ी सभी चीजों के पैसे खुद देने पड़ते हैं। ऐसे में जो पेंशनर पहले से आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, उनके लिए इलाज कराना लगभग नामुमकिन हो गया है।

पेंशनरों ने खुद अपनी स्थिति बयां की है। देवराज ठाकुर का कहना है कि पेंशन समय पर नहीं मिल रही और अन्य लाभ भी नहीं दिए जा रहे हैं। वे कई बार मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से मिल चुके हैं, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिला है। राजेंद्र ठाकुर कहते हैं कि पेंशन एक सेवानिवृत्त कर्मचारी का स्वाभिमान है, लेकिन जब समय से पेंशन नहीं मिलती तो वह अपमानित महसूस करता है और सचिवालय और निगम मुख्यालय के चक्कर लगाने को मजबूर होता है। पेंशनर भागमल का कहना है कि अब सरकारी अस्पतालों में भी इलाज कराना महंगा हो गया है और किसी ऑपरेशन के लिए 1 से 2 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं। वहीं, किशोरी लाल ने बताया कि पेंशन देरी से मिलने के कारण बैंक की किस्तें समय पर नहीं जा रही हैं और दवाइयों के लिए भी इंतजार करना पड़ता है।

पेंशनरों की ये पीड़ा दिखाती है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को समय पर पेंशन देना केवल वित्तीय जिम्मेदारी नहीं बल्कि मानवीय संवेदनशीलता का भी मामला है। जिन लोगों ने अपने जीवन के चार दशक सरकारी सेवा में समर्पित कर दिए, वे आज पेंशन की आस में बीमारी और आर्थिक तंगी से लड़ रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह इस गंभीर मसले पर तुरंत कार्रवाई करे और पेंशनरों को उनका हक समय पर दे, ताकि वे सम्मानपूर्वक और सुरक्षित जीवन जी सकें।

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