Himachal: पहाड़ियों में छुपी खामोश महामारी: हिमाचल में बढ़ते क्रोनिक किडनी डिजीज के मामले चिंताजनक

हिमाचल प्रदेश में क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है, जिसे विशेषज्ञ ‘खामोश महामारी’ के रूप में देख रहे हैं। हाल ही में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन ने इस बीमारी के बढ़ते खतरे की ओर ध्यान आकर्षित किया है। यह अध्ययन शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) में इलाज के लिए आए मरीजों के आंकड़ों पर आधारित है। अध्ययन में कुल 2,609 मरीजों के आंकड़ों का 2014 से 2023 के बीच विश्लेषण किया गया। चौंकाने वाली बात यह रही कि अकेले शिमला जिले से 39.9 प्रतिशत मरीज सामने आए, जिससे यह जिला सीकेडी का प्रमुख हॉटस्पॉट बन गया है। इसके बाद मंडी से 14.5 प्रतिशत, सोलन से 10 प्रतिशत और कुल्लू से 8.6 प्रतिशत मरीज पाए गए। वहीं, लाहौल-स्पीति से सबसे कम 0.6 प्रतिशत मरीज सामने आए, जिसका मुख्य कारण क्षेत्र की कम जनसंख्या और भौगोलिक स्थिति को माना गया।

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अध्ययन की अगुवाई एचपीयू के अंतर विषय अध्ययन विभाग के वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी रणधीर सिंह रांटा ने की, जिनके साथ आंचल शर्मा और सुनंदा संघेल भी शोध में शामिल रहीं। अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि सीकेडी के मामलों में निरंतर वृद्धि हो रही है। वर्ष 2023 में इसके सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए, जो कुल मामलों का 16.9 प्रतिशत थे, जबकि 2017 में यह आंकड़ा सबसे कम 6 प्रतिशत रहा। विशेषज्ञों के अनुसार सीकेडी के बढ़ते मामलों के पीछे मुख्य रूप से मधुमेह, उच्च रक्तचाप और पेशाब में प्रोटीन का रिसाव जैसे कारण जिम्मेदार हैं। आईजीएमसी की नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. कामाक्षी सिंह ने बताया कि इन कारणों के अलावा, गुर्दे की छननी के खराब होने और किडनी की अन्य बीमारियाँ भी इस रोग को बढ़ावा देती हैं।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि शुद्ध पेयजल की कमी, समय पर संतुलित भोजन का अभाव, असंयमित जीवनशैली, धूम्रपान, शराब का सेवन, मानसिक तनाव और रक्तचाप जैसी समस्याएं सीकेडी को बढ़ाने वाले अन्य प्रमुख कारण हैं। शोध में यह भी बताया गया कि कई क्षेत्रों में पेयजल को शुद्ध करने के लिए मानक से अधिक क्लोरीन का प्रयोग किया जा रहा है, जो किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है। लिंग आधारित विश्लेषण में पुरुषों में सीकेडी का प्रतिशत 60.2 रहा, जबकि महिलाओं में यह आंकड़ा 39.8 प्रतिशत दर्ज किया गया। आयु वर्ग के अनुसार 57 से 67 वर्ष और 68 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों में सबसे अधिक मामले पाए गए। 17 वर्ष से कम आयु वाले मरीजों की संख्या अपेक्षाकृत कम रही। 2023 में विशेष रूप से 57 से 67 वर्ष के आयु वर्ग में बीमारी का प्रसार सबसे अधिक रहा।

डॉ. कामाक्षी सिंह ने यह भी कहा कि यदि किसी व्यक्ति को किडनी में पथरी है तो उसका समय पर इलाज करवाना बेहद जरूरी है, क्योंकि इलाज में लापरवाही सीकेडी का रूप ले सकती है। उन्होंने यह भी चेताया कि पानी में मौजूद कुछ तत्व किडनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए साफ और सुरक्षित पेयजल का सेवन जरूरी है। अध्ययन के निष्कर्ष स्पष्ट रूप से बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में क्रोनिक किडनी डिजीज एक गंभीर समस्या का रूप ले चुकी है, जिससे निपटने के लिए जन-जागरूकता और सरकार की सक्रिय भूमिका अत्यंत आवश्यक है।

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