भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में हरनोडा और जमथल गांवों में सील किए गए मकानों को फिर से खोलने का आदेश दिया है। ये मकान करीब डेढ़ महीने पहले दीवाली के समय वन विभाग द्वारा सील किए गए थे। विभाग ने इन मकानों को डिमार्केटेड प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट (DPF) क्षेत्र में अवैध कब्जे का आरोप लगाकर सील किया था। प्रभावित परिवारों में हरनोडा निवासी लाला राम (वंशी राम के पुत्र) और जमथल निवासी वीरेंद्र कुमार (हरिमन के पुत्र) शामिल हैं, जिन्हें अब उनकी संपत्ति का अधिकार मिल गया है।
यह मामला कई वर्षों से जिला न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन था। वन विभाग ने इन मकानों को सील करने के साथ तारबंदी भी कर दी थी। परिवारों का दावा है कि उन्हें 1955 में नौतोड़ योजना के तहत यह भूमि आवंटित की गई थी, जिस पर उन्होंने मकान बनाए और खेती की।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में, वन विभाग की टीम ने ग्राम प्रधान और स्थानीय ग्रामीणों की उपस्थिति में मकानों को खोला। यह आदेश इन परिवारों को अस्थायी राहत प्रदान करता है, जिससे वे अदालत का अंतिम निर्णय आने तक अपने घरों में रह सकते हैं।

वन विभाग का कहना है कि उन्होंने यह कार्रवाई उच्च न्यायालय और जिला न्यायालय के आदेशानुसार की थी, जिसमें इन मकानों को संरक्षित वन क्षेत्र में अतिक्रमण माना गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मकानों का कब्जा लौटाने का आदेश दिया है, लेकिन मामला अभी लंबित है।
इस फैसले से प्रभावित परिवारों को बड़ी राहत मिली है, जिन्होंने वर्षों तक अपने अधिकार के लिए संघर्ष किया। यह मामला वन संरक्षण कानून और लंबे समय से रह रहे निवासियों के अधिकारों के बीच संतुलन की चुनौती को दर्शाता है। साथ ही, यह भूमि आवंटन और कानूनी स्पष्टता की आवश्यकता को भी उजागर करता है।
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