आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी, तनाव और असंतुलित दिनचर्या के कारण भारत में स्ट्रोक (पक्षाघात) के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। अब यह बीमारी सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह, धूम्रपान और शराब जैसे जोखिम कारकों के कारण युवा और मध्यम आयु वर्ग के लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (IGMC) के आंकड़ों के अनुसार, हर साल करीब 300 से 400 मरीज स्ट्रोक के इलाज के लिए भर्ती होते हैं, जिनमें से अधिकांश 61 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के हैं। लिंग के आधार पर 64 प्रतिशत पुरुष और 36 प्रतिशत महिलाएं प्रभावित पाई गईं। स्ट्रोक दो प्रकार का होता है—इस्केमिक स्ट्रोक, जिसमें दिमाग की रक्त वाहिकाओं में थक्का जमने से रक्त प्रवाह रुक जाता है, और रक्तस्रावी स्ट्रोक, जिसमें नस फटने से मस्तिष्क में रक्तस्राव होता है। न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर शर्मा (चमियाना सुपर स्पेशलिटी अस्पताल) के अनुसार, स्ट्रोक एक मेडिकल इमरजेंसी है और मरीज को साढ़े चार घंटे के भीतर सीटी स्कैन सुविधा वाले अस्पताल में पहुंचाना जरूरी होता है। इस दौरान ‘आईवी थ्रोंबोलिसिस’ इंजेक्शन से दिमाग में रक्त प्रवाह को सामान्य कर मरीज की जान बचाई जा सकती है। डॉक्टरों का कहना है कि चेहरे का टेढ़ा होना, बोलने में दिक्कत, एक हाथ या पैर में अचानक कमजोरी, आंखों में धुंधलापन और चक्कर आना इसके प्रमुख शुरुआती लक्षण हैं। सर्दियों में स्ट्रोक का खतरा और बढ़ जाता है, इसलिए ठंड से बचाव, पर्याप्त पानी पीना, नियमित दवाएं लेना और धूम्रपान व शराब से दूरी बनाना बेहद जरूरी है। हिमाचल प्रदेश में स्ट्रोक के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए एचपी टेलीस्ट्रोक अभियान चलाया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि संतुलित खानपान, नियमित व्यायाम और तनाव नियंत्रण से इस जानलेवा बीमारी से काफी हद तक बचाव संभव है।
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