बैजनाथ अपनी भगवान भोलेनाथ के मंदिर और खीर गंगा घाट के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि यहां लंकापति रावण का एक मंदिर और कुंड भी है। ऐसा माना जाता है कि रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने दसों सिरों की बलि इसी कुंड में दी थी। भले ही दुनिया रावण को भूल चुकी हो, पर भगवान शिव आज भी अपने इस परम भक्त की भक्ति को याद रखते हैं।
बैजनाथ देश का एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां दशहरे के दिन रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। कहा जाता है कि जो कोई भी यहां रावण का पुतला जलाने की कोशिश करता है, उसकी मृत्यु हो जाती है। 1965 में एक स्थानीय भजन मंडली ने रावण का पुतला जलाने की प्रथा शुरू की, लेकिन उनके अध्यक्ष की मौत हो गई और अन्य सदस्यों के परिवार पर विपत्तियां आईं। इसके बाद बैजनाथ में दशहरे का पर्व मनाना बंद कर दिया गया। पास के पपरोला गांव में भी यह प्रथा कुछ समय तक चली, लेकिन वहां भी बंद हो गई।
बैजनाथ की एक और विचित्र बात यह है कि यहां कोई सुनार की दुकान नहीं है। जिन्होंने कोशिश की, उनका कारोबार असफल रहा या सोना काला पड़ गया। दो बार प्रयास के बाद अब कोई भी यहां सुनार की दुकान खोलने का साहस नहीं करता।
मंदिर के पुजारी सुरेंद्र आचार्य के अनुसार, बैजनाथ रावण की तपोस्थली है, और यही कारण है कि यहां रावण का पुतला जलाने पर गंभीर परिणाम होते हैं। इस परंपरा का सम्मान करते हुए बैजनाथ में दशहरा बिना रावण दहन के मनाया जाता है।
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