आज के समय में, जब सरकारी और प्राइवेट नौकरियों की दौड़ ने युवाओं के उद्यमी बनने के जज्बे को दबा दिया है, हमीरपुर जिले के गांव भारीं की भावना राणा ने अपनी मेहनत और साहस से सभी के लिए एक प्रेरणा पेश की है।
देहरादून से फूड टेक्नोलॉजी में डिग्री लेने के बाद भावना ने कॉरपोरेट सेक्टर में नौकरी की तलाश की। उन्होंने कुछ समय तक रियल एस्टेट के कारोबार में भी हाथ आजमाया, लेकिन वहां संतोष नहीं मिला। इसी दौरान, उन्हें उद्यान विभाग की मशरूम खेती योजना के बारे में पता चला।
शुरुआत कैसे हुई
उद्यान विभाग की 30% सब्सिडी और मार्गदर्शन से भावना ने अपने घर में छोटे स्तर पर 200 बैग के साथ मशरूम की खेती शुरू की। शुरुआत में ही अच्छे परिणाम मिलने से उनका आत्मविश्वास बढ़ा। धीरे-धीरे उन्होंने अपने प्लांट का विस्तार किया और लोकल मार्केट में मशरूम की नियमित सप्लाई शुरू की।
आज, पीक सीजन में, भावना रोजाना 800 से 1,000 मशरूम के पैकेट बाजार में भेजती हैं। इस उद्यम ने न केवल उन्हें आर्थिक मजबूती दी है बल्कि गांव की 6-7 महिलाओं को रोजगार का अवसर भी प्रदान किया है।
व्यवसाय का विस्तार
भावना ने अपने प्लांट में अलग-अलग लॉट्स में मशरूम उगाने की तकनीक अपनाई है, जिससे मार्केट में सप्लाई हमेशा बनी रहती है। उनकी रणनीति और मेहनत ने उन्हें लोकल मार्केट में मजबूत पकड़ दिलाई है।
सरकार और विभाग का सहयोग
भावना का मानना है कि हिमाचल प्रदेश सरकार और उद्यान विभाग के सहयोग के बिना यह संभव नहीं था। सब्सिडी और तकनीकी सहायता ने उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद की। वह अन्य युवाओं से भी आग्रह करती हैं कि वे सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर अपने उद्यम की शुरुआत करें।
आगे की योजना
भावना अब अपने व्यवसाय को और आगे बढ़ाने की योजना बना रही हैं। वह मशरूम से बने प्रोसेस्ड उत्पाद, जैसे अचार और ड्राई मशरूम, बाजार में लाने पर विचार कर रही हैं। इसके अलावा, वह हिमाचल प्रदेश से बाहर के बाजारों तक भी अपनी पहुंच बनाना चाहती हैं।
भावना राणा की यह कहानी यह साबित करती है कि यदि इच्छा शक्ति और सही मार्गदर्शन हो, तो स्वरोजगार से भी सफलता की ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है।
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