आज की जिंदगी में हालात ऐसे हो गए हैं कि हम मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं कर रहे, बल्कि मोबाइल ही हमें चला रहा है। सुबह आंख खुलते ही सबसे पहले फोन हाथ में होता है और रात को सोते वक्त भी स्क्रीन से नजरें नहीं हटतीं। कई लोग तो आधी रात में नींद खुलने पर भी नोटिफिकेशन चेक करने लगते हैं। अगर फोन कहीं भूल जाएं या इंटरनेट खत्म हो जाए, तो बेचैनी और घबराहट होने लगती है। यह आदत सामान्य नहीं, बल्कि एक मानसिक समस्या है, जिसे चिकित्सा भाषा में नोमोफोबिया यानी नो मोबाइल फोन फोबिया कहा जाता है।
शिमला स्थित इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (IGMC) के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग द्वारा किए गए एक अहम शोध में सामने आया है कि भविष्य के डॉक्टर कहे जाने वाले एमबीबीएस छात्र खुद इस डिजिटल लत की चपेट में हैं। यह अध्ययन स्मार्टफोन के बढ़ते प्रभाव और उससे जुड़ी गंभीर समस्याओं की ओर इशारा करता है।
डॉ. अमित सचदेवा और उनकी टीम ने 406 मेडिकल छात्रों पर यह सर्वे किया, जिसके नतीजे जर्नल ऑफ पायोनियर मेडिकल साइंसेज में प्रकाशित हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक करीब 71 प्रतिशत छात्रों में नोमोफोबिया का मध्यम स्तर पाया गया, जबकि 19 प्रतिशत छात्र अति-गंभीर स्थिति में हैं। यानी कुल मिलाकर बड़ी संख्या में छात्र मोबाइल से दूर रहने की कल्पना मात्र से असहज हो जाते हैं।
अध्ययन में यह भी सामने आया कि करीब 70 प्रतिशत युवा रोजाना चार घंटे से ज्यादा समय मोबाइल स्क्रीन पर बिताते हैं। नींद से जुड़ी आदतें भी बेहद चिंताजनक हैं। 86 प्रतिशत छात्र बिस्तर पर जाने के बाद भी फोन नहीं छोड़ पाते और 81 प्रतिशत की सुबह की शुरुआत मोबाइल स्क्रीन देखने से होती है। इतना ही नहीं, 23 प्रतिशत छात्र ऐसे हैं जो रात में नींद टूटने पर भी सबसे पहले फोन उठाकर नोटिफिकेशन चेक करते हैं।
मोबाइल का असर पढ़ाई और अनुशासन पर भी साफ दिख रहा है। करीब 71 प्रतिशत छात्र लेक्चर के दौरान मोबाइल इस्तेमाल करते पाए गए, जबकि लगभग 78 प्रतिशत छात्रों ने शौचालय में भी फोन इस्तेमाल करने की बात स्वीकार की है। यह आदत पढ़ाई की गुणवत्ता और एकाग्रता दोनों पर असर डाल रही है।
स्मार्टफोन की यह लत केवल मानसिक स्तर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। अध्ययन में शामिल 65 प्रतिशत छात्रों ने माना कि मोबाइल की वजह से उन्हें समय पर नींद नहीं आती। आधे से ज्यादा छात्र सिरदर्द और आंखों में जलन या तनाव जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। वहीं, 40 प्रतिशत छात्रों ने कहा कि रात में देर तक फोन चलाने के कारण उन्हें दिनभर सुस्ती और नींद महसूस होती है।
नोमोफोबिया एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति को फोन से दूर होने, बैटरी खत्म होने या नेटवर्क न मिलने के ख्याल से ही बेचैनी, घबराहट और पसीना आने लगता है। यह एक अदृश्य लत है, जो धीरे-धीरे इंसान की एकाग्रता, नींद और मानसिक शांति को प्रभावित कर रही है। IGMC का यह अध्ययन साफ संकेत देता है कि मोबाइल की आदत पर समय रहते नियंत्रण जरूरी है, वरना इसके परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं।
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