दिल्ली में आयोजित आर्कटिक सर्कल कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद अनुराग ठाकुर ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर बात करते हुए आर्कटिक और हिमालय के बीच गहरे संबंधों को उजागर किया। उन्होंने कहा कि ध्रुवीय क्षेत्र भारत के जलवायु भविष्य से सीधे जुड़े हुए हैं और इस पर युवाओं के नेतृत्व वाले नवाचार व वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है। अनुराग ठाकुर ने हिमालय में ग्लेशियर झीलों की बढ़ती संख्या को लेकर चिंता जताई। उन्होंने बताया कि अकेले हिमाचल प्रदेश में 2005 में जहां 127 झीलें थीं, वहीं 2015 तक इनकी संख्या बढ़कर 156 हो गई, जो पर्वतीय समुदायों के लिए एक गंभीर खतरे का संकेत है।
उन्होंने सिक्किम में हाल ही में हुई बाढ़ का उल्लेख करते हुए कहा कि एक ग्लेशियर झील के फटने से आई यह बाढ़ एक सख्त चेतावनी है। उन्होंने कहा कि भारत सिर्फ देख ही नहीं रहा, बल्कि अब ठोस कार्रवाई भी कर रहा है। उन्होंने बताया कि आर्कटिक जैसी जलवायु वाला लद्दाख अब सतत नवाचारों के लिए एक परीक्षण स्थल के रूप में उभर रहा है। यहां भारत का पहला हरित ऊर्जा से संचालित ‘नाइट स्काई अभ्यारण्य’ स्थापित किया जा रहा है और इस क्षेत्र में देश का पहला कार्बन-तटस्थ गांव बनाने की भी योजना है।
अनुराग ठाकुर ने कहा कि यह पहल विज्ञान, सततता और आत्मनिर्भरता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आर्कटिक में जो हो रहा है, वह केवल वहीं तक सीमित नहीं है। पिघलती बर्फ की परतें और अनियमित मानसून जैसे प्रभाव भारत को भी प्रभावित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आर्कटिक क्षेत्र दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है और इसका असर पूरी दुनिया में हीट वेव, सूखा, बाढ़ और जैव विविधता के नुकसान के रूप में सामने आ रहा है।
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