बिलासपुर स्थित एम्स के फिजियोलॉजी विभाग की अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. पूनम वर्मा ने नींद को लेकर अहम एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने कहा कि अच्छी नींद हमारे मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की नींव है, लेकिन मौजूदा समय में बदलती जीवनशैली, तनाव और डिजिटल उपकरणों के बढ़ते उपयोग के चलते लोग पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण नींद नहीं ले पा रहे हैं। डॉ. वर्मा ने कहा कि नींद सिर्फ आराम का समय नहीं है, बल्कि यह शरीर और मस्तिष्क की मरम्मत और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया है। यदि हम नींद को प्राथमिकता नहीं देंगे तो हमारी कार्यक्षमता, स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन सभी प्रभावित हो सकते हैं।
उन्होंने बताया कि नींद मुख्य रूप से दो चरणों में बंटी होती है—नॉन रैपिड आई मूवमेंट (NREM) और रैपिड आई मूवमेंट (REM)। NREM नींद में तीन चरण होते हैं, जिनमें मांसपेशियां आराम करती हैं, शरीर की मरम्मत होती है और ऊर्जा संचित होती है। यह याददाश्त, प्रतिरक्षा प्रणाली और शरीर के विकास के लिए जरूरी होती है। इस दौरान हृदय गति और श्वसन धीमा हो जाता है, जिससे हृदय और रक्तचाप को स्थिर रखने में मदद मिलती है। वहीं, REM नींद के दौरान आंखें तेजी से हिलती हैं और यह मस्तिष्क के लिए रीसेट बटन की तरह कार्य करती है। उन्होंने कहा कि एक संपूर्ण नींद चक्र लगभग 90 मिनट का होता है और एक रात में ऐसे 4 से 6 चक्र आते हैं।
डॉ. वर्मा ने आगाह किया कि अगर कोई व्यक्ति 6 घंटे से कम नींद लेता है, तो इससे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसमें हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, इंसुलिन संवेदनशीलता में कमी के कारण मधुमेह का खतरा, मोटापा, अवसाद, चिंता, एकाग्रता में कमी और चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएं शामिल हैं। नींद की कमी से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर हो जाती है, जिससे संक्रमण और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
उन्होंने नींद को प्रभावित करने वाले मुख्य कारणों की भी जानकारी दी। मोबाइल, लैपटॉप और टीवी जैसे डिजिटल उपकरणों से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को बाधित करती है, जो नींद के लिए आवश्यक होता है। देर रात तक स्क्रीन देखने से नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है और नींद आने में देरी होती है। इसके अलावा, चाय, कॉफी, एनर्जी ड्रिंक्स और सोडा में मौजूद कैफीन केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है, जिससे नींद में खलल पड़ता है। सोने से 4-6 घंटे पहले कैफीन का सेवन नींद की गुणवत्ता को कम कर सकता है। सोने से पहले अत्यधिक या वसायुक्त भोजन करने से पेट भारी महसूस होता है, जिससे एसिडिटी और अपच की समस्या हो सकती है। इससे गहरी और शांतिपूर्ण नींद में बाधा आती है। उन्होंने कहा कि देर रात तक जागना और सुबह देर से उठना शरीर की आंतरिक घड़ी को बाधित करता है। इसके साथ ही परीक्षा का तनाव, ऑफिस वर्कलोड, व्यक्तिगत समस्याएं और अत्यधिक चिंता भी नींद की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
अच्छी नींद के लिए डॉ. वर्मा ने कुछ सुझाव भी दिए हैं। उन्होंने कहा कि सोने और जागने का नियमित समय तय करना चाहिए। सोने से एक घंटे पहले मोबाइल और लैपटॉप का उपयोग नहीं करना चाहिए। सोने से चार घंटे पहले कैफीन और भारी भोजन से बचना चाहिए। नींद के लिए अनुकूल वातावरण बनाना चाहिए और बिस्तर का इस्तेमाल केवल सोने के लिए करना चाहिए। बिस्तर पर बैठकर काम करने या मोबाइल चलाने से बचना चाहिए। दिनभर में पर्याप्त शारीरिक व्यायाम करना चाहिए, लेकिन सोने से दो घंटे पहले अधिक वर्कआउट करने से बचना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सोने से पहले हल्का व्यायाम, योग और ध्यान करना फायदेमंद होता है, जिससे मानसिक शांति बनी रहती है। यदि नींद की समस्या बनी रहे तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
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