
जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के गांव बनौर की निर्भीक महिला पत्रकार प्रीती चौहान इन दिनों चर्चाओं में हैं। प्रीती चौहान ने हाल ही में राजधानी शिमला में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पांवटा साहिब के दो चर्चित पत्रकारों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने इन दोनों पर बार-बार मानसिक उत्पीड़न, ब्लैकमेलिंग और अन्य व्यक्तिगत हमलों के आरोप लगाए हैं। जानकारी के अनुसार, ये दोनों पत्रकार पूर्व में भी जेल जा चुके हैं। इस घटना के बाद गिरिपार क्षेत्र में प्रीती चौहान के समर्थन में एकजुटता देखने को मिल रही है। सोशल मीडिया से लेकर व्यक्तिगत संपर्कों तक, लोग उनके साहस की सराहना कर रहे हैं और उन्हें सच के साथ डटे रहने का हौसला दे रहे हैं।
प्रीती चौहान सिरमौर में एक स्पष्टवादी और निडर पत्रकार के रूप में जानी जाती हैं, जिनकी कार्यशैली से अधिकांश लोग परिचित हैं। ऐसे में उनका इस प्रकार खुलकर सामने आना और राज्यपाल, मुख्यमंत्री तथा हिमाचल प्रदेश पुलिस महानिदेशक से न्याय की गुहार लगाना, इस मामले की गंभीरता को दर्शाता है। साथ ही, यह घटना केवल एक व्यक्तिगत विवाद नहीं बल्कि पत्रकारिता में पनप रही कुछ विकृत प्रवृत्तियों की ओर भी इशारा करती है।
हालांकि, निष्पक्षता के सिद्धांत के तहत जिन दो पत्रकारों पर आरोप लगाए गए हैं, उन्हें भी अपना पक्ष रखने और तथ्यों के आधार पर आरोपों को खारिज करने का संवैधानिक अधिकार है। यदि वे इन आरोपों को झूठा सिद्ध कर पाते हैं, तो उन्हें भी न्याय मिलना चाहिए। इसी कारण, समाज को भावनाओं में बहने की बजाय दोनों पक्षों की सत्यता को तटस्थ रूप से समझने की आवश्यकता है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रीती चौहान ने स्थानीय पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए, जो कहीं न कहीं खाकी की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। उनका शिमला जाकर मीडिया के सामने अपनी बात रखना यह दर्शाता है कि वे स्थानीय स्तर पर न्याय पाने में असफल रहीं और अब प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व से न्याय की उम्मीद कर रही हैं। ऐसे में पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वह निष्पक्ष और दबावमुक्त जांच सुनिश्चित करे।
यह घटना साधारण नहीं कही जा सकती क्योंकि इसमें एक महिला पत्रकार द्वारा बार-बार प्रताड़ित किए जाने के आरोप लगाए गए हैं। पहले कभी प्रीती चौहान द्वारा इस तरह के आरोप सामने नहीं आए हैं, जिससे उनके आरोपों की गंभीरता और बढ़ जाती है। अब यह समाज का भी नैतिक दायित्व बनता है कि ब्लैकमेलिंग और पत्रकारिता की आड़ में चल रही ऐसी गतिविधियों का विरोध किया जाए, ताकि भविष्य में किसी और बेटी को मानसिक पीड़ा का सामना न करना पड़े।
मीडिया जगत के लिए यह समय आत्ममंथन का भी है। अगर कुछ लोग पत्रकारिता को व्यक्तिगत स्वार्थों और पैसे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, तो ऐसे लोगों का खुलकर विरोध होना चाहिए। समाज, पुलिस और मीडिया को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय हो, चाहे वह किसी के भी खिलाफ क्यों न हो।
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