Kangra: सेवानिवृत्ति के बाद बदली किस्मत: कांगड़ा के जीवन सिंह राणा ने ड्रैगन फ्रूट से लिखी सफलता की नई कहानी

कांगड़ा जिले के नगरोटा सूरियां क्षेत्र के घार जरोट गांव से ताल्लुक रखने वाले सेवानिवृत्त प्रवक्ता जीवन सिंह राणा ने यह साबित कर दिया है कि रिटायरमेंट किसी सफर का अंत नहीं, बल्कि एक नई और बेहतर शुरुआत भी हो सकती है। शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद जहां अधिकतर लोग आराम की जिंदगी चुनते हैं, वहीं जीवन सिंह राणा ने प्राकृतिक खेती को अपनाकर न सिर्फ खुद को सक्रिय रखा, बल्कि सैकड़ों किसानों के लिए प्रेरणा बन गए।

कृषक परिवार से आने वाले जीवन सिंह राणा ने सितंबर 2020 में पंजाब के बरनाला स्थित एक ड्रैगन फ्रूट फार्म का दौरा कर इस नई और लाभकारी फसल की बारीकियां समझीं। इसके बाद उन्होंने अपने बेटे सिविल इंजीनियर आशीष राणा और पत्नी कुन्ता राणा के साथ मिलकर खेती के क्षेत्र में नई शुरुआत की। हिमाचल प्रदेश बागवानी विभाग से तकनीकी मार्गदर्शन लेकर उन्होंने 6 कनाल भूमि में लाल छिलके वाली ड्रैगन फ्रूट किस्म के 450 पौधे लगाए।

मेहनत का असर पहले ही सीजन में दिखने लगा और दूसरे सीजन तक उन्हें करीब 1 लाख 25 हजार रुपये की आमदनी हुई। इस साल अब तक वे लगभग 26 क्विंटल ड्रैगन फ्रूट 250 से 300 रुपये प्रति किलो के भाव से बेच चुके हैं, जिससे करीब 7 लाख रुपये की आय हुई है। फिलहाल उनके बाग में 1125 पोल पर 4500 से ज्यादा पौधे लगे हैं और भविष्य में खेती का दायरा और बढ़ाने की योजना है।

ड्रैगन फ्रूट को ‘सुपर फ्रूट’ कहा जाता है, लेकिन इसके गुणों से आज भी कई लोग अनजान हैं। राणा परिवार की मेहनत से न सिर्फ यह फल क्षेत्र में लोकप्रिय हुआ है, बल्कि इसके स्वास्थ्य लाभों को लेकर भी जागरूकता बढ़ी है। इसी योगदान के चलते उन्हें प्रदेश और केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न मंचों पर सम्मानित भी किया जा चुका है।

जीवन सिंह राणा वर्ष 2014 से ही प्राकृतिक खेती अपना चुके थे। कृषि विभाग से प्रशिक्षण लेकर उन्होंने सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया और साहीवाल नस्ल की गाय पालकर प्राकृतिक खेती के लिए जरूरी सभी सामग्री खुद तैयार की। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और फसलें रोगों से भी सुरक्षित रहती हैं।

ड्रैगन फ्रूट के अलावा वे स्ट्रॉबेरी, मक्का, गेहूं, लाल बासमती धान, चना, अलसी, कोदरा, अदरक और हल्दी की खेती भी कर रहे हैं। सब्जियों में लौकी, टिंडा, खीरा, करेला, भिंडी और बैंगन उगाए जा रहे हैं। साथ ही उनके खेतों में अमरूद, पपीता, जामुन, हरड़, बेहड़ा और आंवला जैसे फलदार पौधे भी लहलहा रहे हैं।

प्रदेश सरकार के कृषि और बागवानी विभाग ने उन्हें समय-समय पर तकनीकी और वित्तीय सहायता दी। प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत देसी गाय खरीद, गौशाला निर्माण, गौमूत्र भंडारण, ट्रैक्टर, बोरवेल, ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली के साथ-साथ ड्रैगन फ्रूट पौधों और पॉलीहाउस पर सब्सिडी दी गई।

जीवन सिंह राणा बताते हैं कि शुरुआत में उन्होंने 100 पोल पर 500 पौधे लगाए थे, बाद में 125 और पोल जोड़कर खेती का विस्तार किया। वे मल्टी-क्रॉपिंग के प्रयोग भी कर रहे हैं और ड्रैगन फ्रूट के बीच पपीते के करीब 50 पौधे लगाए गए हैं, जिनमें जल्दी फल आना शुरू हो गया है। उनके ड्रैगन फ्रूट की मांग अब हिमाचल से बाहर भी है। दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित प्रदर्शनी के जरिए उनके उत्पाद को इंग्लैंड तक से ऑर्डर मिले हैं।

उनका कहना है कि हिमाचल प्रदेश बागवानी विभाग और प्राकृतिक खेती योजनाओं का उनकी सफलता में बड़ा योगदान है। वे मानते हैं कि ईमानदारी और लगन से काम किया जाए तो गांव में रहकर भी सम्मानजनक जीवन, बेहतर स्वास्थ्य और अच्छी आय संभव है। अब उनका बेटा आशीष राणा भी इस काम को आगे बढ़ा रहा है।

उधर, जिला कांगड़ा के उपनिदेशक उद्यान अलक्ष पठानिया ने बताया कि जिले में ड्रैगन फ्रूट की खेती को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। फिलहाल करीब 3 हेक्टेयर क्षेत्र में यह फसल उगाई जा रही है और नगरोटा सूरियां, नूरपुर, देहरा व रैत जैसे क्षेत्रों में किसान इसे अपना रहे हैं। उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती पर प्रति हेक्टेयर 3 लाख 37 हजार 500 रुपये तक का अनुदान दिया जा रहा है और यह फसल जल्दी उत्पादन देने के साथ बाजार में अच्छा दाम भी दिला रही है।

अपनी मेहनत, नवाचार और प्राकृतिक खेती के प्रति समर्पण से जीवन सिंह राणा ने यह साबित कर दिया है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी सफलता की नई इबारत लिखी जा सकती है और ड्रैगन फ्रूट की लालिमा अब पूरे क्षेत्र की पहचान बन चुकी है।

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