हिमाचल प्रदेश में छुपा इतिहास का गवाह रिहलू का किला
पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग के पास बसा एक छोटा सा कस्बा है शाहपुर। शाहपुर से बाईं ओर 9 किलोमीटर लंबा शाहपुर-चंबी मार्ग, इस क्षेत्र के कई गांवों को मुख्य राजमार्ग से जोड़ता है। इसी मार्ग पर आगे बढ़ते हुए लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है रिहलू गांव, जहां का प्राचीन किला हिमाचल प्रदेश के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। आज भले ही यह किला खंडहर में बदल चुका है, लेकिन इसके अतीत की कहानियाँ अब भी इतिहास प्रेमियों के लिए बेहद आकर्षक हैं।
रिहलू किले का प्रारंभिक इतिहास
वर्तमान में काँगड़ा जिले के अंतर्गत आने वाला रिहलू अतीत में चंबा रियासत का हिस्सा था। इतिहास में पहली बार रिहलू का उल्लेख चंबा के राजा प्रताप सिंह के शासनकाल (1559 ई.) में मिलता है। मुगल साम्राज्य के वित्त मंत्री टोडरमल ने राजा प्रताप सिंह से यह क्षेत्र शाही जागीर में शामिल कर लिया था। इसके बाद लगभग 200 सालों तक यह क्षेत्र मुगलों के अधीन रहा। इस दौरान अकबर के वजीर बीरबल का भी रिहलू से विशेष संबंध रहा और इसे उन्होंने कुछ समय तक आवास स्थल के रूप में भी इस्तेमाल किया।
चंबा और काँगड़ा के बीच रिहलू का संघर्ष
मुगल साम्राज्य के पतन के बाद क्षेत्र में नए राजा अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए लड़ने लगे। उस समय राजा संसार चंद ने त्रिगर्त रियासत और 11 अन्य रियासतों पर दावा किया, जिसमें रिहलू भी शामिल था। चंबा के राजा राज सिंह ने रिहलू पर अपना अधिकार बरकरार रखा और यहाँ एक किले का निर्माण करवाया। रिहलू की इस भूमि पर कब्जे के लिए 1794 ई. में शाहपुर के पास नेरटी नामक स्थान पर राजा राज सिंह और राजा संसार चंद की सेनाओं के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसे ‘नेरटी के युद्ध’ के नाम से जाना जाता है।
इस युद्ध में राजा राज सिंह ने अपनी 45 सिपाहियों की छोटी सेना के साथ वीरता से युद्ध किया और अंततः वीरगति को प्राप्त हुए। राजा राज सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र ने उनकी स्मृति में 1796 ई. में नेरटी के निकट एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया। आज भी यहाँ हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है।
रिहलू का महत्व और किले का निर्माण
रिहलू का यह क्षेत्र चंबा रियासत के लिए न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था। इसकी उपजाऊ भूमि और पहाड़ी भूभाग इसे अन्य रियासतों के लिए आकर्षक बनाते थे। मुगल काल में इस क्षेत्र को चड़ी-घरोह और अन्य कई गांवों के साथ जोड़ा गया था, जो काँगड़ा और चंबा के बीच विवाद का कारण बना। चंबा के राजा ने इस क्षेत्र पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए रिहलू में एक मजबूत किले का निर्माण करवाया, ताकि बाहरी आक्रमणों से क्षेत्र की रक्षा की जा सके।
सिखों का अधिपत्य और मिर्ज़ा परिवार का आगमन
1821 ई. में सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह के सत्ता में आने के बाद, हिमाचल के कांगड़ा क्षेत्र पर सिखों का प्रभुत्व स्थापित हुआ। महाराजा रणजीत सिंह ने काँगड़ा के किले के साथ-साथ रिहलू के परगने पर भी नियंत्रण स्थापित किया और देस्सा सिंह मजीठिया को इस क्षेत्र का सूबेदार नियुक्त किया। चंबा के राजा की मृत्यु के बाद उनकी रानी ने सिख सेना के साथ संघर्ष करने के बजाय रिहलू को देस्सा सिंह मजीठिया को सौंप दिया।
मिर्ज़ा परिवार का शासनकाल
रिहलू के बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार, मिर्ज़ा परिवार की पांच पीढ़ियों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। मिर्ज़ा परिवार को राजौरी क्षेत्र से निर्वासित किया गया था, जिसके बाद उन्हें रिहलू की जागीर सौंपी गई। यह घटना महाराजा गुलाब सिंह के शासनकाल के दौरान हुई, जिन्होंने राजौरी के शासक रहीम उल्लाह खान को उनके खिलाफ षड्यंत्र करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और उनके पुत्र को निर्वासन में भेज दिया। मिर्ज़ा परिवार के आगमन के बाद लगभग 100 वर्षों तक उनका इस क्षेत्र पर प्रभुत्व रहा।
1905 का विनाशकारी भूकंप और किले की दुर्दशा
1905 के कांगड़ा भूकंप ने इस क्षेत्र में व्यापक तबाही मचाई। इस प्राकृतिक आपदा में रिहलू का किला भी पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। मिर्ज़ा परिवार के कई सदस्य इस भूकंप में मारे गए, और किला हमेशा के लिए खंडहर में तब्दील हो गया। 1947 में भारत के विभाजन के दौरान मिर्ज़ा परिवार के शेष सदस्य रिहलू छोड़कर पाकिस्तान चले गए। इसके बाद यह किला वीरान हो गया और धीरे-धीरे इसकी दीवारें गिरने लगीं।
रिहलू का वर्तमान और भविष्य की संभावनाएँ
वर्तमान में रिहलू का किला जर्जर हालत में है। जहाँ एक ओर यह किला हिमाचल प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर है, वहीं दूसरी ओर इसके संरक्षण के लिए कोई विशेष कदम नहीं उठाए गए हैं। किले की टूटी दीवारें और उगी हुई घास इसकी बदहाली का प्रमाण हैं। प्रशासन की उदासीनता के कारण यह ऐतिहासिक स्थल अब शराब पीने और जुआ खेलने का अड्डा बन गया है।
हिमाचल प्रदेश में ऐसी कई ऐतिहासिक धरोहरें हैं जो संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रही हैं। बछरेटू, बहादुरपुर, नौण और कोट कहलूर के किले भी इसी दुर्दशा का शिकार हो रहे हैं। यदि सरकार और स्थानीय लोग इन धरोहरों को संरक्षित करने का प्रयास करें, तो इन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।
पर्यटन और ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण
रिहलू किले जैसे ऐतिहासिक स्थल न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं, बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। यदि इस किले का सही संरक्षण किया जाए, तो यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकता है। इसके साथ ही यह किला क्षेत्र के लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर सकता है।
सरकार द्वारा उचित नीतियाँ और योजनाएं बनाई जाएँ, तो हिमाचल प्रदेश के इन भूले-बिसरे किलों को देशभर में प्रसिद्ध किया जा सकता है। साथ ही, यह न केवल स्थानीय लोगों के जीवन को बेहतर बना सकता है, बल्कि पूरे क्षेत्र के आर्थिक विकास में योगदान दे सकता है।
निष्कर्ष
रिहलू का किला हिमाचल प्रदेश की उस ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक है, जो समय के साथ गुमनामी में खो गई है। इस किले के संरक्षण और प्रचार-प्रसार की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपने गौरवशाली इतिहास से परिचित हो सकें। उम्मीद है कि एक दिन ऐसा आएगा जब हिमाचल के ये किले रणथम्भौर और चित्तौड़गढ़ जैसे किलों की तरह प्रसिद्ध होंगे और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करेंगे।
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