द्रोणाचार्य पीजी कॉलेज, रैत के संजीवनी क्लब ने 10 दिसंबर 2024 को श्रीमद्भगवद्गीता जयंती महोत्सव के दूसरे दिन का आयोजन उत्साह और श्रद्धा के साथ किया। यह तीन दिवसीय महोत्सव, जो श्रीमद्भगवद्गीता के शाश्वत उपदेशों को समर्पित है, छात्रों, शिक्षकगण और प्रतिष्ठित अतिथियों की उपस्थिति में संपन्न हुआ। सभी ने गीता के महत्व और उसकी प्रासंगिकता पर चर्चा की।
इस दिन का मुख्य आकर्षण मुख्य अतिथि प्रोफेसर आर.पी. चोपड़ा का भाषण था। उन्होंने अपनी बातों में गीता के महत्व को विस्तार से बताया, जो आज के युग में भी अत्यंत प्रासंगिक है। प्रोफेसर चोपड़ा ने गीता के उपदेशों को आज के समय में लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया और बताया कि गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक वैज्ञानिक तरीका है।

कार्यक्रम की शुरुआत देवी सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुई, जो ज्ञान और विद्या की देवी के प्रति सम्मान का प्रतीक है। इसके बाद मुख्य अतिथि और अन्य अतिथियों का फूलों से स्वागत किया गया, जिसमें प्रबंध निदेशक जी.एस. पठानिया, कार्यकारी निदेशक बी.एस. पठानिया और प्रधानाचार्य पी.के. शर्मा सहित अन्य प्रमुख व्यक्ति उपस्थित थे।
इस दिन की अन्य प्रमुख गतिविधि बी.एड विभाग द्वारा आयोजित इंटर-हाउस प्रजेंटेशन प्रतियोगिता और श्लोक पाठ प्रतियोगिता थी। प्रतियोगिता में छात्रों ने गीता के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए, जबकि श्लोक पाठ प्रतियोगिता में छात्रों ने गीता के श्लोकों का उचारण किया। छात्रों की श्रद्धा और गीता के प्रति प्रेम ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
लेकिन, प्रोफेसर आर.पी. चोपड़ा का भाषण कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण था। उन्होंने गीता के उपदेशों की महत्वता पर बात करते हुए “कर्म” (कर्तव्य) के महत्व को बताया और कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी से करना चाहिए, जिससे व्यक्तिगत विकास संभव हो सके। प्रोफेसर चोपड़ा ने गीता को एक सार्वभौमिक मार्गदर्शक माना, जो किसी विशेष धर्म से संबंधित नहीं है, बल्कि सभी मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर है।

उनका सबसे प्रभावशाली संदेश यह था कि “कृतज्ञता का भाव सबसे अच्छा भाव है।” यह साधारण सा लेकिन गहरा संदेश सभी उपस्थित लोगों के दिलों में बस गया।
कार्यक्रम के अंत में प्रोफेसर चोपड़ा को कार्यकारी निदेशक बी.एस. पठानिया और प्रधानाचार्य पी.के. शर्मा द्वारा पारंपरिक पहाड़ी टोपी और एक सम्मान चिन्ह देकर उनके प्रेरणादायक संबोधन के लिए सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम ने सभी को गीता के उपदेशों पर विचार करने का अवसर दिया और इस दिन के उपदेशों को जीवन में लागू करने की प्रेरणा दी।
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