कुल्लू, 03 अक्तूबर 2025 – हिमाचल प्रदेश की संस्कृति और परंपराओं को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने वाला अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव इस वर्ष भी अपने पूरे भव्यता और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। इस उत्सव का शुभारम्भ 2 अक्तूबर को भगवान रघुनाथ जी की भव्य रथ यात्रा के साथ हुआ था और अब यह उत्सव सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, धार्मिक आयोजनों और पारंपरिक उत्साह से परिपूर्ण हो चुका है।
गुरुवार सायं राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कुल्लू के लाल चंद प्रार्थी कला केंद्र में सप्ताह भर चलने वाले अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की पहली सांस्कृतिक संध्या का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर राज्यपाल की धर्मपत्नी जानकी शुक्ला भी मौजूद थीं।
स्थानीय कलाकारों को प्राथमिकता देने पर बल
राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि ऐसे भव्य उत्सवों के दौरान स्थानीय कलाकारों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मंच मिलने से न केवल प्रतिभा को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण भी सुनिश्चित होगा। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के गांव-गांव में छिपी कला और संस्कृति को सामने लाने के लिए इस तरह के मंच एक सशक्त माध्यम बन सकते हैं।

कुल्लू दशहरा: आस्था और एकता का प्रतीक
राज्यपाल ने इस उत्सव से अपने जुड़ाव को याद करते हुए कहा कि पिछले तीन वर्षों से उन्हें भगवान रघुनाथ जी के दर्शन करने का सौभाग्य मिल रहा है। उन्होंने कहा कि जब हजारों युवा मिलकर भगवान रघुनाथ जी के रथ को खींचते हैं, तो वह दृश्य अत्यंत दिव्य और आलौकिक लगता है। यह परंपरा हमारी संस्कृति की आत्मा है और इसे केवल उत्सव तक सीमित न रखकर आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना चाहिए।
देवभूमि हिमाचल की पहचान
राज्यपाल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है और वर्षभर यहां देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। उन्होंने बताया कि कुल्लू घाटी के विभिन्न हिस्सों से 300 से अधिक देवी-देवता इस दशहरा उत्सव में भाग लेने के लिए एकत्रित होते हैं। यही कारण है कि यह उत्सव विश्वभर में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है और इसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखा जाता है।
प्राकृतिक आपदाओं से जूझता प्रदेश
राज्यपाल ने अपने संबोधन में हाल की प्राकृतिक आपदाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इस वर्ष हिमाचल प्रदेश को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। कई परिवारों ने अपने घर और जमीन खो दी। उन्होंने कहा कि प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए भूमि उपलब्ध करवाने को लेकर केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री से चर्चा की गई है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके हालिया धर्मशाला दौरे के दौरान स्थिति से अवगत करवाया गया है।
उन्होंने प्रभावित परिवारों की हिम्मत और साहस की सराहना की और कहा कि प्रदेशवासियों ने हमेशा कठिन परिस्थितियों का डटकर सामना किया है। उन्होंने रेडक्रॉस द्वारा किए जा रहे राहत एवं पुनर्वास कार्यों की भी प्रशंसा की।
नशामुक्त हिमाचल की अपील
राज्यपाल ने हिमाचल प्रदेश को नशामुक्त बनाने की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने कहा कि नशा समाज की जड़ों को खोखला कर रहा है और इस बुराई से लड़ने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में सरकार का सहयोग करें और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण तैयार करें।

सांस्कृतिक संध्या का आकर्षण
कुल्लू दशहरा उत्सव की पहली सांस्कृतिक संध्या में स्थानीय कलाकारों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों का मन मोह लिया। हिमाचली लोकगीत, नृत्य और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनों ने वातावरण को और भी जीवंत बना दिया। दर्शक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे और उन्होंने कलाकारों को तालियों से सराहा।
कुल्लू दशहरा की वैश्विक पहचान
यह उत्सव केवल धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह प्रदेश की आर्थिक, सामाजिक और पर्यटन दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हर वर्ष हजारों पर्यटक इस भव्य उत्सव को देखने कुल्लू घाटी पहुंचते हैं। स्थानीय शिल्पकारों और कलाकारों को अपने उत्पाद प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है।
निष्कर्ष
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव आस्था, एकता और संस्कृति का अनोखा संगम है। राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल के नेतृत्व में आयोजित पहली सांस्कृतिक संध्या ने न केवल इस आयोजन की भव्यता को और बढ़ाया, बल्कि लोगों को यह संदेश भी दिया कि परंपरा और संस्कृति ही किसी समाज की असली धरोहर होती है।
यह उत्सव आने वाले दिनों में भी सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं से भरपूर रहेगा और प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा।
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