हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रॉक्टर एंड गैंबल हाईजीन एंड हैल्थ की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें कंपनी ने धोखाधड़ी के आरोप में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि शिकायत में लगाए गए आरोपों को सही माना जाए, तो यह धोखाधड़ी का प्रथम दृष्टया मामला बनता है और ऐसे में एफआईआर रद्द करना उचित नहीं होगा। न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने कहा कि जब कानून के तहत अपराध की जांच शुरू हो जाती है, तो उसे केवल इस आधार पर नहीं रोका जा सकता कि जांच अधिकारी के पास अधिकार नहीं था।
यह मामला दिल्ली निवासी राजीव राय सचदेवा की ओर से दायर शिकायत पर आधारित है। शिकायत में कहा गया है कि वह एक टैक्नो इनोवेटर और उद्यमी हैं, जिन्होंने नीम और तुलसी के अर्क का उपयोग कर एक विशेष विधि से कपड़ा रंगने की तकनीक विकसित की है। यह तकनीक एंटी-वायरल, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-फंगल, दुर्गंध-रोधी, यूवी प्रोटेक्शन तथा कीड़े-मच्छर भगाने वाले गुणों से युक्त है। उन्होंने इस तकनीक को भारत, अमेरिका और यूरोप में पेटेंट कराया है।
शिकायत के अनुसार, प्रॉक्टर एंड गैंबल हाईजीन एंड हैल्थ द्वारा संचालित ‘पी एंड जी कनेक्ट + डिवेलप’ कार्यक्रम के तहत कंपनी ने नवाचारकों को साझेदारी के लिए आमंत्रित किया था। इस पहल के तहत शिकायतकर्ता ने सैनेटरी पैड और डायपर जैसे उत्पादों में अपनी पेटेंट तकनीक के इस्तेमाल का प्रस्ताव भेजा। कंपनी ने इस प्रविष्टि को स्वीकार किया, लेकिन बाद में ईमेल के माध्यम से सूचित किया कि वे आगे कोई सहयोग नहीं चाहते। आरोप है कि इसके कुछ समय बाद कंपनी ने शिकायतकर्ता की तकनीक का इस्तेमाल कर ‘व्हिस्पर अल्ट्रा क्लीन (हर्बल तेल के साथ नया)’ नाम से एक उत्पाद बाजार में लॉन्च किया।
शिकायतकर्ता ने इसे धोखाधड़ी बताते हुए कंडाघाट की अदालत में भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 415, 420 और 405 के तहत मामला दर्ज करने का अनुरोध किया। अदालत ने शिकायत में दर्ज आरोपों को प्रथम दृष्टया अपराध मानते हुए स्टेशन हाउस ऑफिसर, कंडाघाट को एफआईआर दर्ज कर जांच करने के निर्देश दिए।
इसके विरुद्ध प्रॉक्टर एंड गैंबल हाईजीन एंड हैल्थ ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। कंपनी का कहना था कि शिकायतकर्ता की तकनीक एक विशेष तापमान पर कपड़े को रंगने की प्रक्रिया से संबंधित है, जबकि उनका उत्पाद सैनेटरी नैपकिन है, जो पूरी तरह अलग तकनीक से तैयार किया जाता है। कंपनी ने अपने उत्पाद के निर्माण को स्वतंत्र और मूल बताया।
हालांकि, हाईकोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि तथ्यों की जांच पुलिस द्वारा की जानी चाहिए, न कि एफआईआर दर्ज करने के स्तर पर इनकार किया जाए। कोर्ट ने साफ कहा कि कानून के तहत शुरू हुई जांच को इस आधार पर नहीं रोका जा सकता कि कौन जांच कर रहा है।
इस निर्णय के बाद अब पुलिस को एफआईआर के तहत जांच आगे बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया है। मामले को लेकर न्यायिक प्रक्रिया जारी रहेगी, और अब इस पर आगे की कानूनी कार्रवाई होगी।
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