बैजनाथ के धरेड़ गांव की वृक्षा देवी का जीवन असाधारण संघर्षों और साहस की मिसाल बन चुका है। उनका जन्म ऐसे हालातों में हुआ, जहां जीवन की शुरुआत ही दुखों की गठरी लेकर आई। महज 5 साल की उम्र में उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया और अपने दो भाइयों से भी अलग हो गईं। माता-पिता की मृत्यु के बाद परिवार की स्थिति इतनी बिगड़ गई कि बच्चों को बाल आश्रम भेजने तक की नौबत आ गई थी। लेकिन उस समय वृक्षा देवी के दादा बरड़ू राम और दादी साहनी देवी ने बेटा-बेटी का फर्क न करते हुए लड़की को खुद पालने का निर्णय लिया और उसे पढ़ाया-लिखाया।
समय के साथ वृक्षा देवी बड़ी होती गईं और शिक्षा में लगातार आगे बढ़ती रहीं। वर्ष 2003 में उन्होंने 10वीं कक्षा की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की। जब उनकी पारिवारिक स्थिति की जानकारी स्कूल की अध्यापिका स्वर्गीय कुसुम भंडारी को मिली, तो उन्होंने वृक्षा की आगे की पढ़ाई का खर्च उठाने का फैसला किया। इसके परिणामस्वरूप वृक्षा देवी ने 2008 में बैजनाथ के सनातन धर्म महाविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
इसके बाद विवाह के पश्चात उनके पति रमेश कुमार, जो गोरखपुर में सैन्य सुरक्षा बल में एएसआई के पद पर तैनात थे, ने उनकी पढ़ाई में रुचि और लगन को देखते हुए उन्हें बीएड और एमएड करने के लिए प्रोत्साहित किया। पति के सहयोग और अपने परिश्रम के चलते वृक्षा देवी ने शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) और कमीशन परीक्षा सफलतापूर्वक पास की और वर्ष 2019 में उनकी नियुक्ति राजकीय उच्च विद्यालय धरोटी (राजगढ़) में भाषा अध्यापक के पद पर हुई।
सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा था, लेकिन हाल ही में वृक्षा देवी को एक और बड़ा झटका तब लगा जब उनके पति रमेश कुमार की अचानक हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई। उस कठिन समय में भी वृक्षा देवी ने साहस नहीं छोड़ा। उन्होंने पति की अंतिम संस्कार की रस्मों के दौरान सरकार और समाज से यह अपील की कि फौजियों की पत्नियों को ‘विधवा’ नहीं, बल्कि ‘सुहागिन’ माना जाए, क्योंकि सैनिक कभी मरते नहीं – वे देश के लिए अमर हो जाते हैं।
इस दौरान वृक्षा देवी अपने सास-ससुर को भी ढांढस बंधाती रहीं। उनके दो बच्चे – बेटी शैवी जो 8वीं कक्षा में पढ़ती है और बेटा कनव जो 5वीं में है – अभी स्कूल में हैं। वृक्षा देवी का कहना है कि यदि उन्हें अवसर मिला तो वे अपने बच्चों को भी सेना में भेजने से पीछे नहीं हटेंगी। वृक्षा देवी का जीवन इस बात का प्रतीक बन चुका है कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद यदि हौसला मजबूत हो तो हर पतझड़ के बाद जीवन फिर से हरा-भरा हो सकता है।
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