हिमाचल प्रदेश में ऊना जिले से जुड़ा दुराचार का मामला इन दिनों सुर्खियों में है। जिला ऊना की एक युवती द्वारा दर्ज करवाई गई शिकायत में एचएएस अधिकारी और एसडीएम ऊना पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। मामला दर्ज हुए एक सप्ताह से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन अभी तक पुलिस आरोपी तक नहीं पहुंच सकी है। आरोपी अधिकारी न तो ड्यूटी पर लौटे हैं और न ही उनका कोई ठिकाना पता चल पाया है। ऐसे में प्रदेश की जनता, सोशल मीडिया और मीडिया जगत इस मुद्दे को लेकर लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं।
इस पूरे प्रकरण को और भी गंभीर बना रही है यह बात कि आरोपी एसडीएम ने प्रदेश उच्च न्यायालय में अपने अधिवक्ता के माध्यम से जमानत याचिका दाखिल की है। इस पर आगामी 3 अक्तूबर को सुनवाई होनी है। अब सबकी निगाहें अदालत के फैसले पर टिकी हैं, क्योंकि उसी के बाद यह साफ होगा कि मामला किस दिशा में जाएगा और पुलिस कार्रवाई किस प्रकार से आगे बढ़ेगी।
पुलिस प्रशासन ने दावा किया है कि वह आरोपी तक पहुंचने के लिए लगातार प्रयासरत है। एएसपी ऊना सुरेन्द्र शर्मा की अगुवाई में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया है, जो इस मामले की जांच कर रहा है। एसआईटी ने कई टीमों को तैनात किया है जो विभिन्न ठिकानों पर दबिश दे रही हैं। पुलिस ने आरोपी एसडीएम की ऑडी गाड़ी को भी कब्जे में ले लिया है। यह गाड़ी मामले से जुड़ी महत्वपूर्ण कड़ी मानी जा रही है।
इस मामले ने पूरे प्रदेश में बड़ी चर्चा छेड़ दी है। खासकर सोशल मीडिया पर लोग इस घटना को लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएँ दे रहे हैं। कई यूजर्स का कहना है कि जब पुलिस पहले भी कई बड़े मामलों को सुलझाकर आरोपियों को पकड़ चुकी है, तो फिर इस बार एक एचएएस अधिकारी को गिरफ्तार करने में क्यों असमर्थ है। लोगों ने यह सवाल भी उठाए कि यदि पुलिस जम्मू से ब्लाइंड मर्डर के आरोपी को पकड़ सकती है और कर्नाटक से एक लापता युवती को बरामद कर सकती है, तो आखिर एक भूमिगत अधिकारी तक क्यों नहीं पहुंच पा रही है।
जनता के बीच उठ रहे इन सवालों ने पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस घटना के बाद प्रदेश की राजनीति में भी हलचल है। लोग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अगर एक आम नागरिक पर इतने गंभीर आरोप लगे होते तो अब तक वह सलाखों के पीछे होता। लेकिन यहां एक बड़े पद पर बैठे अधिकारी का नाम आने के कारण कार्रवाई धीमी दिखाई दे रही है।
सोशल मीडिया पर चर्चा का सबसे बड़ा विषय यही है कि क्या कानून सभी के लिए समान है या फिर पद और प्रतिष्ठा के आधार पर कार्रवाई में फर्क किया जाता है। कई उपयोगकर्ताओं ने लिखा कि यह घटना न केवल आरोपी पर बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र की साख पर सवाल खड़े कर रही है। वहीं, कुछ लोग पीड़िता के साहस की भी सराहना कर रहे हैं कि उसने इतने बड़े अधिकारी के खिलाफ खुलकर शिकायत दर्ज करवाई।
पुलिस की ओर से अब तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान स्पष्ट रूप से सामने नहीं आया है। हालांकि, एसआईटी प्रमुख एएसपी सुरेन्द्र शर्मा का कहना है कि आरोपी तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं और विभिन्न जगहों पर दबिश डाली जा रही है। उनका दावा है कि जल्द ही आरोपी पुलिस की गिरफ्त में होगा।
प्रदेश में चर्चित बन चुके इस मामले ने सरकार और पुलिस दोनों की जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लोग पूछ रहे हैं कि क्या आरोपी अधिकारी को राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है, जिसकी वजह से वह अभी तक पुलिस की पकड़ से बाहर है। दूसरी ओर, अदालत में जमानत याचिका दाखिल किए जाने से भी यह मामला और पेचीदा हो गया है।
यदि अदालत आरोपी को जमानत देती है तो पीड़िता और उसके परिवार के लिए न्याय की राह मुश्किल हो सकती है। वहीं, यदि जमानत खारिज होती है तो पुलिस पर आरोपी को जल्द गिरफ्तार करने का दबाव और बढ़ जाएगा। इस स्थिति में पुलिस और प्रशासन के सामने पारदर्शिता और निष्पक्ष कार्रवाई करना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
स्थानीय लोग मानते हैं कि इस तरह के मामलों में देरी न्याय व्यवस्था की साख को कमजोर करती है। जब एक महिला साहस जुटाकर शिकायत करती है तो उससे उम्मीद होती है कि कानून तुरंत और सख्त कार्रवाई करेगा। लेकिन यहां मामला एक सप्ताह से अधिक समय से लंबित है और आरोपी अधिकारी अभी भी भूमिगत हैं।
कानून विशेषज्ञों का भी मानना है कि इस मामले का प्रभाव प्रदेश की प्रशासनिक छवि पर पड़ेगा। जब किसी उच्च पदस्थ अधिकारी पर ऐसे गंभीर आरोप लगते हैं तो पूरे तंत्र की विश्वसनीयता प्रभावित होती है। ऐसे में जरूरी है कि पुलिस निष्पक्ष जांच कर जल्द से जल्द सच सामने लाए और आरोपी को कानून के दायरे में लाए।
सोशल मीडिया पर चल रही बहस यह भी बता रही है कि लोग अब ज्यादा जागरूक हो चुके हैं और वे प्रशासनिक कार्रवाई पर निगाह बनाए रखते हैं। लोगों का यह दबाव भी पुलिस पर असर डाल सकता है, क्योंकि अब कोई भी मामला पहले की तरह दबाया नहीं जा सकता।
कुल मिलाकर, ऊना दुराचार मामला केवल एक आपराधिक घटना नहीं बल्कि कानून, न्याय और प्रशासन की कार्यशैली पर बड़ा सवाल बन गया है। आने वाले दिनों में अदालत का फैसला और पुलिस की कार्रवाई यह तय करेगी कि क्या पीड़िता को न्याय मिलेगा और क्या कानून का राज वास्तव में सबके लिए बराबर है।
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