Himachal: हिमाचल में पेड़ों की कटाई पर नई रोक: बिना अनुमति सिर्फ तीन प्रजातियों की कटाई संभव

हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य में पेड़ों की कटाई पर नए नियम लागू किए हैं, जिसके तहत केवल तीन प्रजातियों—सफेदा, पॉपुलर, और बांस—की कटाई बिना अनुमति के की जा सकती है। इन नियमों का उद्देश्य राज्य के वन आवरण की सुरक्षा और सतत विकास को सुनिश्चित करना है।

नए नियमों के अनुसार, व्यक्तिगत उपयोग के लिए प्रति वर्ष अधिकतम तीन पेड़ काटे जा सकते हैं। यह छूट केवल उपरोक्त तीन प्रजातियों पर लागू होती है। खैर के पेड़ों की कटाई के लिए 10 वर्षों की अवधि के बाद ही अनुमति दी जाएगी।

पहले 13 प्रजातियों के पेड़ों को बिना अनुमति के काटने की छूट थी। लेकिन इस प्रावधान का दुरुपयोग करके लकड़ी को “फ्यूल वुड” के नाम पर पंजाब सहित अन्य राज्यों में बेचा जा रहा था। इस कारण हिमाचल प्रदेश में कई पेड़ प्रजातियां, जैसे बान, तुनी, टिंबर, और पाजा, विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थीं।

पेड़ों की कटाई के नए दिशानिर्देश

  1. व्यक्तिगत उपयोग के लिए कटाई:
    • प्रति वर्ष 3 पेड़: सफेदा, पॉपुलर, और बांस के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं।
    • 3 से अधिक पेड़: वन विभाग से अनुमति आवश्यक।
  2. व्यापक कटाई के लिए अनुमतियां:
    • 200 पेड़ तक: वन मंडल अधिकारी की अनुमति।
    • 201–300 पेड़: मुख्य अरण्यपाल की अनुमति।
    • 301–400 पेड़: प्रधान मुख्य अरण्यपाल की अनुमति।
    • 400 से अधिक पेड़: हिमाचल प्रदेश सरकार की अनुमति।
  3. अनिवार्य रोपण:
    • प्रत्येक कटे पेड़ के बदले तीन पौधे लगाने होंगे।
    • यदि फलदार पौधे लगाए जाते हैं, तो बागवानी विभाग के दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य होगा।
  4. बिक्री के लिए विशेष अनुमति:
    • अन्य प्रजातियों के पेड़ों की बिक्री प्रधान मुख्य अरण्यपाल की अनुमति से होगी।

वन संरक्षण के प्रयास

नए नियम वनों की कटाई को रोकने और नए पौधों के रोपण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं। अतिरिक्त मुख्य सचिव केके पंत द्वारा जारी अधिसूचना में सभी प्रशासनिक सचिवों, विभाग प्रमुखों, और जिलाधीशों को इन नियमों को कड़ाई से लागू करने का निर्देश दिया गया है।

अवैध गतिविधियों पर रोकथाम

पहले की नीतियों का दुरुपयोग करके कुछ समूहों ने राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का शोषण किया और बान, तुनी जैसे पेड़ों को काटकर पड़ोसी राज्यों में बेचा। सरकार ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए नए निर्देश जारी किए हैं, ताकि इन दुर्लभ प्रजातियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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