सर्वोच्च न्यायालय ने ब्राह्मो समाज मंदिर ट्रस्ट शिमला की संपत्तियों से जुड़े मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि वह हाईकोर्ट द्वारा जारी यथास्थिति बनाए रखने के आदेशों में कोई दखल नहीं देगा। हाईकोर्ट के इस फैसले को हिमालयन ब्रह्मो समाज के अनुयायियों ने चुनौती दी थी।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने 25 सितंबर को इस मामले में अहम फैसला सुनाया था। खंडपीठ ने हिमालयन ब्रह्मो समाज के अनुयायियों की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि ब्रह्मो समाज मंदिर ट्रस्ट की संपत्तियों से जुड़े मामलों में कानून-व्यवस्था बनाए रखी जाए।
मामले के अनुसार, हिमालयन ब्रह्मो समाज के अनुयायियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन्हें मंदिर में प्रवेश करने और अपनी परंपरा व संस्कृति के अनुसार पूजा व अन्य धार्मिक गतिविधियां करने की अनुमति दी जाए।
इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि मंदिर को राम कृष्ण मिशन के संतों से तुरंत अपने कब्जे में लिया जाए और ब्रह्मो समाज मंदिर, शिमला के भविष्य के प्रबंधन को लेकर उचित आदेश पारित किए जाएं। याचिका में यह भी आग्रह किया गया था कि प्रतिवादियों को निर्देश देकर याचिकाकर्ताओं के पूजा संबंधी मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए।
इससे पहले एकल पीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ताओं को अपने विवाद दीवानी अदालत के समक्ष रखने की अनुमति दी थी। एकल पीठ के इन आदेशों को बाद में खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया। अब सुप्रीम कोर्ट के दखल से इनकार करने के बाद हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रहेगा।
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