धर्मशाला, 9 जून। जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) कांगड़ा की ओर से आपदा के समय मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक सहयोग पर केंद्रित तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का शुभारंभ एडीएम शिल्पी बेक्टा ने किया। कार्यक्रम का आयोजन धर्मशाला में किया गया, जिसमें एडीएम ने अपने संबोधन में कहा कि आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में मानसिक स्वास्थ्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि किसी भी आपदा के प्रभाव केवल भौतिक या आर्थिक नहीं होते, बल्कि उसका सबसे गहरा असर मानसिक स्तर पर देखने को मिलता है। अक्सर आपदा के बाद मानसिक प्रभावों को अनदेखा कर दिया जाता है, जिससे प्रभावित व्यक्ति को समय पर सहायता नहीं मिल पाती।

एडीएम बेक्टा ने कहा कि ऐसी प्रशिक्षण पहलें फ्रंटलाइन वर्कर्स की क्षमताओं को मजबूत करने में सहायक होती हैं और उन्हें मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े लक्षणों को पहचानने व समय पर सहयोग प्रदान करने में सक्षम बनाती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समाज में जागरूकता की कमी के चलते आपदाओं के मानसिक प्रभावों को गंभीरता से नहीं लिया जाता, जो कि चिंता का विषय है। इसलिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े डॉक्टरों को बायोसाइकोसोशल प्रभावों के प्रति संवेदनशील रहने की आवश्यकता है ताकि आपदा के बाद मानसिक स्थिति को समय रहते समझा जा सके।
प्रशिक्षण शिविर के पहले दिन, ज़ोनल अस्पताल धर्मशाला की मनोचिकित्सक डॉ. अनीता ठाकुर और विशेषज्ञ संदीप शर्मा ने प्रतिभागियों को आपदा की स्थिति में उत्पन्न मानसिक तनाव, अवसाद और मनोसामाजिक समर्थन के विभिन्न तरीकों पर विस्तार से जानकारी दी। इस प्रशिक्षण में पुलिस विभाग, एसडीआरएफ, होम गार्ड्स, शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं तथा कई स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े कर्मचारियों ने भाग लिया। प्रशिक्षण में बड़ी संख्या में फ्रंटलाइन वर्कर्स की उपस्थिति यह दर्शाती है कि अब आपदा प्रबंधन में मानसिक सहयोग को लेकर गंभीरता बढ़ रही है।
कार्यक्रम आगामी दो दिनों तक जारी रहेगा, जिसमें विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रतिभागियों को मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक सहयोग से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसमें व्यावहारिक अभ्यास, समूह चर्चा और केस स्टडीज के माध्यम से ज्ञान साझा किया जाएगा ताकि प्रशिक्षण अधिक प्रभावशाली और व्यावहारिक हो सके। एडीएम शिल्पी बेक्टा ने इस प्रयास को कांगड़ा डीडीएमए की ओर से एक महत्वपूर्ण पहल बताया जो आपदा के दौरान प्रभावित व्यक्तियों की मानसिक स्थिति को समझने और उन्हें समय पर सहयोग प्रदान करने की दिशा में एक सशक्त कदम है।
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