Himachal: हिमाचल में मां-बेटे की दुर्दशा: घास-पत्ते खाकर गुजार रहे जिंदगी, प्रशासन ने नहीं ली सुध

हिमाचल प्रदेश के उना जिले में एक मां और उसका 27 वर्षीय बेटा बेहद दयनीय हालत में जीवन बिता रहे हैं। जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर कुटलैहड़ क्षेत्र की धमांदरी पंचायत के मंसोह मोहल्ले में रहने वाली सरोज देवी और उनका मानसिक रूप से अस्वस्थ बेटा नवीन बुनियादी जरूरतों से भी वंचित हैं। इनके पास न तो घर के दरवाजे हैं, न बिजली, न खाना पकाने के लिए बर्तन, और न ही कोई अन्य सहारा। इनकी हालत इतनी खराब है कि जब खाने को कुछ नहीं मिलता, तो ये घास और पत्ते खाकर पेट भरने को मजबूर हो जाते हैं।

घर की स्थिति भी नारकीय हो चुकी है। छत पर लैंटर पड़ा हुआ है, लेकिन दीवारें बिना प्लास्टर की हैं और फर्श भी कच्चा है। पूरे घर में कचरा भरा हुआ है। रसोई में केवल एक चूल्हा और एक परात मौजूद है, बाकी कोई भी बर्तन नहीं है। मां-बेटे की चारपाई भी इतनी गंदी हो चुकी है कि उस पर आवारा कुत्ते भी शरण लेते हैं।

करीब 12 साल पहले घर के मुखिया ओम प्रकाश की मृत्यु हो गई थी। उनकी मौत के बाद सरोज देवी और नवीन अकेले पड़ गए। नवीन ने जमा दो तक पढ़ाई की थी, लेकिन उसके बाद उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ गई और वह घर में ही कैद होकर रह गया। इस बीच, बिजली का बिल न भर पाने के कारण विद्युत विभाग ने कनेक्शन भी काट दिया, जिससे यह परिवार अंधेरे में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हो गया।

पड़ोसी ज्योति सिंह का कहना है कि आसपास के लोग जब संभव होता है, इस परिवार के लिए भोजन लेकर आते हैं। लेकिन सभी की अपनी सीमाएं हैं और हर दिन मदद कर पाना संभव नहीं होता। जब इनको खाना नहीं मिलता, तो यह घास और पत्ते चबा लेते हैं। उन्होंने बताया कि कई बार प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं से मदद की गुहार लगाई गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। यहां तक कि पंचायत प्रतिनिधि भी कभी इनकी सुध लेने नहीं आए।

सरोज देवी के देवर बलवीर सिंह का कहना है कि उनके भाई की मृत्यु के बाद उन्होंने जितनी मदद संभव हो सकी, की, लेकिन अब वह खुद बीमार रहते हैं और उनका भी परिवार है। उन्होंने कहा कि पंचायत और प्रशासन को इस परिवार की मदद के लिए आगे आना चाहिए, लेकिन अब तक किसी ने कोई कदम नहीं उठाया।

प्रशासन और पंचायत की इस अनदेखी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार की ओर से जरूरतमंदों के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन यह परिवार अब तक किसी भी योजना का लाभ नहीं उठा सका है। सवाल यह है कि क्या अब प्रशासन इस परिवार की मदद करेगा, या मां-बेटे को यूं ही घास-पत्ते खाकर जीने के लिए छोड़ दिया जाएगा?

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