आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में हम हर जिम्मेदारी निभाने की कोशिश करते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा नजरअंदाज खुद को ही कर देते हैं। काम का दबाव, परिवार की अपेक्षाएं, मोबाइल स्क्रीन पर बीतता वक्त और लगातार भागते विचार मन को धीरे-धीरे थका देते हैं। नतीजा यह होता है कि बेचैनी, चिंता और नींद की समस्याएं अब आम बात बन चुकी हैं।
इसी सच्चाई की ओर ध्यान दिलाने के लिए हर साल 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद यही है कि लोग समझ सकें कि मानसिक शांति भी उतनी ही जरूरी है जितना शारीरिक स्वास्थ्य। जब मन शांत होता है, तभी जीवन में संतुलन आ पाता है।
ध्यान कोई कठिन या जटिल प्रक्रिया नहीं है। यह बस कुछ पल खुद के साथ ठहरने का अभ्यास है। कुछ मिनट अपनी सांसों पर ध्यान देना, मन को वर्तमान में लाना और बेवजह की उलझनों से दूरी बनाना ही ध्यान का मूल है। नियमित ध्यान से तनाव और चिंता में कमी आती है, मन हल्का महसूस करता है, नींद बेहतर होती है और गुस्सा व बेचैनी पर नियंत्रण बढ़ता है। साथ ही सोचने और निर्णय लेने की क्षमता भी मजबूत होती है।
बच्चों के लिए ध्यान एक सकारात्मक आदत बन सकता है। इससे उनमें एकाग्रता बढ़ती है, आत्मविश्वास मजबूत होता है और पढ़ाई में मन लगाने में मदद मिलती है। वहीं गर्भवती महिलाओं के लिए ध्यान और भी खास है। जब मां मानसिक रूप से शांत रहती है, तो उसका सकारात्मक प्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु पर भी पड़ता है। ध्यान मां और बच्चे के बीच भावनात्मक जुड़ाव को मजबूत करता है।
ध्यान की शुरुआत करना भी बेहद आसान है। किसी शांत जगह पर बैठें, आंखें बंद करें और अपनी सांसों के आने-जाने पर ध्यान केंद्रित करें। रोज़ाना सिर्फ 5 से 10 मिनट का अभ्यास भी काफी फर्क ला सकता है। योग थेरेपिस्ट शिखा मनकोटिया के अनुसार, जब मन शांत होता है, तो जीवन अपने आप संतुलन की ओर बढ़ने लगता है।
विश्व ध्यान दिवस के अवसर पर यही संदेश है कि दिनभर की व्यस्तता के बीच खुद को भी थोड़ा समय दें। कुछ पल का ध्यान न सिर्फ मन को सुकून देगा, बल्कि जीवन को भी हल्का और संतुलित बना देगा।
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