राज्य सरकार ने आय बढ़ाने के लिए एक नया रास्ता तलाश लिया है। वॉटर सेस से अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के बाद अब हिमाचल प्रदेश सरकार ने जलविद्युत परियोजनाओं से भू-राजस्व वसूलने का फैसला किया है। सरकार ने राज्य की सभी जलविद्युत परियोजनाओं पर उनके औसत बाजार मूल्य के आधार पर 2 प्रतिशत की दर से भू-राजस्व लगाने का प्रस्ताव रखा है। यह भू-राजस्व 1 जनवरी 2026 से लागू होगा और सभी परियोजनाओं को इसका भुगतान करना होगा।
सरकार के आकलन के अनुसार इस फैसले से प्रदेश को कुल 1852.97 करोड़ रुपये की आमदनी होने की संभावना है। यदि यह प्रस्ताव लागू हो जाता है तो आर्थिक तंगी से जूझ रही राज्य सरकार के लिए यह किसी बड़ी राहत से कम नहीं होगा। इस संबंध में राज्य सरकार की ओर से दो अलग-अलग अधिसूचनाएं जारी की गई हैं। सरकार ने इन प्रस्तावों पर हितधारकों से 15 दिन के भीतर आपत्तियां और सुझाव मांगे हैं। सभी आपत्तियों और सुझावों पर विचार करने के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
पहली अधिसूचना भू-व्यवस्था विभाग की ओर से जारी की गई है, जो जिला किन्नौर, शिमला, बिलासपुर, सोलन, सिरमौर और लाहौल-स्पीति में स्थापित जलविद्युत परियोजनाओं पर लागू होगी। इन छह जिलों से सरकार को कुल 1126.45 करोड़ रुपये का भू-राजस्व मिलने का अनुमान है। वहीं दूसरी अधिसूचना भू-व्यवस्था अधिकारी एवं राजस्व अधिकारी निर्धारण प्रभारी कांगड़ा मंडल द्वारा जारी की गई है। यह अधिसूचना लाहौल-स्पीति, कुल्लू, कांगड़ा, चंबा और मंडी जिलों में स्थापित परियोजनाओं पर लागू होगी, जिनसे 726.52 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होने की संभावना जताई गई है।
इस प्रस्ताव के तहत बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं पर करोड़ों रुपये का वार्षिक भू-राजस्व तय किया गया है। इसमें 1000 मेगावाट कड़छम वांगतू परियोजना से 155.07 करोड़ रुपये, 1500 मेगावाट नाथपा झाकड़ी जलविद्युत परियोजना से 222.6 करोड़ रुपये, पौंग डैम हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बीबीएमबी से 58.76 करोड़ रुपये और ब्यास-सतलुज लिंक प्रोजेक्ट से 146.91 करोड़ रुपये भू-राजस्व प्रस्तावित किया गया है।
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