हिमाचल प्रदेश में 108 और 102 एम्बुलेंस सेवाओं के कर्मचारियों के साथ हो रहा शोषण लगातार चिंता का विषय बना हुआ है। दो महीने से वेतन न मिलने के कारण कर्मचारियों में भारी नाराजगी है और उन्होंने सरकार तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के प्रति गहरी असंतुष्टि जताई है। कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने बार-बार प्रशासन और एनएचएम के प्रबंध निदेशक से संपर्क किया, लेकिन उनकी मांगों को अनदेखा कर दिया गया।
कर्मचारियों ने जानकारी दी कि एम्बुलेंस सेवा देने वाली कंपनी के प्रदेश प्रभारी ने एमडी एनएचएम के समक्ष खुद यह भरोसा दिलाया था कि 25 से 26 जून तक वेतन का भुगतान कर दिया जाएगा, लेकिन यह आश्वासन भी झूठा साबित हुआ। अब तक उन्हें दो माह का वेतन नहीं दिया गया है, और एमडी एनएचएम की ओर से भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
सबसे गंभीर आरोप यह है कि कंपनी कर्मचारियों के वेतन से ईपीएफ के दोनों हिस्से काट रही है, जोकि श्रम कानूनों के विरुद्ध है। कर्मचारियों ने बताया कि स्टेट हेड ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि ऐसा करना नियमों के खिलाफ है। इस पर एमडी एनएचएम ने आदेश जारी किए थे कि कर्मचारियों के वेतन से दोनों हिस्से नहीं काटे जाएंगे, फिर भी कंपनी ने आदेशों का पालन नहीं किया और कर्मचारियों का उत्पीड़न जारी रखा।
कर्मचारी जब भी वेतन की जानकारी के लिए ऑफिस पहुंचते हैं, तो उन्हें केवल एक ही उत्तर दिया जाता है – “एनएचएम से पैसा नहीं आया है।” यह जवाब पिछले दो महीनों से लगातार दिया जा रहा है, जिससे कर्मचारियों में निराशा और गुस्सा लगातार बढ़ रहा है। कर्मचारियों ने राज्य सरकार से मांग की है कि जो कंपनी कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ है, उसका टेंडर तुरंत रद्द किया जाए।
स्थिति केवल कर्मचारियों तक सीमित नहीं है, बल्कि एम्बुलेंस सेवाओं की हालत भी दयनीय हो चुकी है। राज्यभर में 108 और 102 एम्बुलेंसों की स्थिति इतनी खराब है कि खुद स्टाफ को भी उनमें बैठने से डर लगता है। लगभग 70 प्रतिशत एम्बुलेंसों में आवश्यक प्राथमिक उपचार उपकरण या तो अनुपलब्ध हैं या फिर खराब हो चुके हैं। कई एम्बुलेंसों में तो ऑक्सीमीटर तक खराब हैं, जिससे ऑक्सीजन देने का काम अंदाज़े पर ही किया जा रहा है। ऐसे में मरीजों की जान भी खतरे में पड़ रही है।
कर्मचारियों की यूनियन अब कंपनी के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी कर रही है। इसके साथ ही कई सामाजिक संगठन भी इस मामले में सक्रिय हो गए हैं और सरकार से हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह मामला केवल कर्मचारियों का नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ा है। कर्मचारियों ने राज्य सरकार से अपील की है कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जल्द से जल्द कार्रवाई की जाए और कर्मचारियों के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जाए।
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