संगत बीते कई दिनों से इस आशा में थी कि बाबा जी उन्हें साक्षात दर्शन देंगे। यह प्रतीक्षा उस समय समाप्त हुई जब बाबा जी हजूर जसदीप गिल के साथ सत्संग स्थल पर पहुंचे। कार्यक्रम की शुरुआत पाठियों के सत्संग से हुई। इसके बाद बच्चों से प्रश्नोत्तर का विशेष सत्र हुआ और अंत में बाबा जी और हजूर जी ने संगत को जीप में दर्शन दिए।

इस बार के सत्संग का मुख्य विषय “नाम सिमरन” था। सत्संग में बाबा जी ने कहा कि जो कुछ भी बाहरी आंखों से दिखाई देता है, वह माया है। माया हमें असल सत्य से दूर करती है। उन्होंने बताया कि प्रभु की प्राप्ति केवल नाम सिमरन से ही संभव है। बच्चों के प्रश्नों के दौरान एक बच्चे ने पूछा कि प्रेम क्या है? बाबा जी ने उत्तर दिया कि प्रेम केवल भावना नहीं बल्कि एक अवस्था है। यह शरीर और मन से परे की स्थिति है, जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है।
एक और सवाल था कि मनमुखी और गुरुमुखी में क्या अंतर है? इस पर बाबा जी ने स्पष्ट किया कि जो अपने मन की बातों को मानता है, वह मनमुखी कहलाता है। लेकिन जो गुरु की बातों पर चलता है और उनके बताए सत्य मार्ग पर अग्रसर होता है, वही गुरुमुखी होता है।
एक बच्चे ने बताया कि जब वह कोई काम करता है, तो उसके भीतर नकारात्मक विचार आ जाते हैं। इस पर बाबा जी ने कहा कि नेगेटिविटी और पॉजिटिविटी दोनों इंसान के भीतर होती हैं। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपनी सोच को कैसे आगे बढ़ाता है। यदि आप सकारात्मक दिशा में सोचेंगे तो सबकुछ बेहतर होगा।
ध्यान और नामदान के संबंध में पूछे गए सवाल पर बाबा जी ने कहा कि ध्यान लगाने के लिए किसी विशेष वस्तु की आवश्यकता नहीं है। जब चाहे, ध्यान में बैठा जा सकता है। हालांकि नामदान साधना को दिशा देने का माध्यम बनता है। बाबा जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि अभी तो आप छोटे हो, अभी से इतनी चिंता क्यों?
बुल्ले शाह की एक पंक्ति को उद्धृत करते हुए बाबा जी ने कहा – “ओ शाह तो सातों बख नहीं, उस शाह ते बाजों कख नहीं, बस बेखन वाली अख नहीं।” यानी सच्चाई तो हर जगह है, बस देखने वाली नजर नहीं है।
एक बच्ची ने शबद गाया और कहा कि उसका कोई सवाल नहीं है। इस पर बाबा जी ने कहा कि “बेटा तुम बहुत अच्छा गाती हो, तुम्हें इसमें आगे प्रयास करना चाहिए।” जब एक बच्चे ने पूछा कि हम कई बार अपने माता-पिता का दिल दुखा देते हैं और फिर पछताते हैं, तो बाबा जी ने कहा कि बच्चे ऐसा ही करते हैं। लेकिन माता-पिता हर कार्य हमारी भलाई के लिए करते हैं। इसलिए हमें उनकी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।
एक बच्ची ने जब हजूर जी का धन्यवाद करते हुए कहा कि बाबा जी को लाने के लिए शुक्रिया, तो बाबा जी मुस्कराते हुए बोले, “क्यों, क्या मैं पहले नहीं आता था? अब तो आप अपनी निष्ठाएं भी बदल रहे हैं।” इस पर पूरे पंडाल में हंसी की लहर दौड़ गई।
एक बच्चे ने जब पूछा कि उसके पेरेंट्स शादी की बात कर रहे हैं, लेकिन वह अभी सैटल होना चाहता है, तो बाबा जी ने हंसते हुए कहा कि “क्या तुम 10 साल लोगे सैटल होने में? आखिर शादी तो करनी ही पड़ेगी, और वो खुद आकर तुम्हें सैटल कर देगी।” इस पर पूरी संगत खिलखिला उठी।
एक बच्ची ने बताया कि उसे बहुत गुस्सा आता है। इस पर बाबा जी ने सहजता से कहा कि “ठीक है बेटा, अगर तुझे कोई सहने वाला मिल गया तो ठीक, वरना यह गुस्सा तेरे लिए ही भारी पड़ेगा।”
जब एक महिला ने बाबा जी से बोलने का अवसर देने के लिए धन्यवाद किया, तो बाबा जी ने मुस्कुराते हुए कहा – “यह पहली बीबी है जो बोलने का मौका दिए जाने पर शुक्रिया कह रही है, वरना बीबियां दूसरों को बोलने का मौका ही कब देती हैं।” बाबा जी की इस बात पर भी पंडाल में ठहाके लगने लगे।
इस तरह पूरे सत्संग में श्रद्धा के साथ-साथ हास्य और सरलता का अद्भुत संगम देखने को मिला। बाबा जी की सरल वाणी और बच्चों के सहज सवालों ने संगत को गहरे भाव से जोड़ दिया।
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