जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया है। इस घटनाक्रम के चलते वर्ष 1972 में शिमला के वार्नेस कोर्ट (वर्तमान राजभवन) में हुए भारत-पाक समझौते को रद्द करने की मांग उठने लगी है। यह समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ था। इस ऐतिहासिक बैठक में भुट्टो के साथ उनकी पुत्री बेनजीर भुट्टो भी शिमला आई थीं, जो आगे चलकर पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं।

इस समझौते के तहत दोनों देशों ने यह तय किया था कि वे आपसी विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से, केवल द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से सुलझाएंगे। इस समझौते की एक प्रमुख शर्त यह भी थी कि कोई भी तीसरा देश इन मामलों में मध्यस्थता नहीं करेगा। इसके अलावा, दोनों देशों को एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना था और एलओसी का उल्लंघन भी नहीं होना था। हालांकि, पाकिस्तान ने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान इस समझौते का उल्लंघन कर दिया।
समझौते में यह भी स्पष्ट था कि भारत और पाकिस्तान आपसी विवादों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाएंगे। फिर भी, पाकिस्तान ने बार-बार कश्मीर समेत अन्य मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय पटल पर उठाया है। वर्ष 1971 के युद्ध में जीत के बाद भारत के पास पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक सैनिक बंदी थे, जिन्हें शिमला समझौते के तहत रिहा कर दिया गया था। उस समय यह भारत के लिए एक बड़ा कूटनीतिक अवसर था, जिसे कई विशेषज्ञ आज भी चूका हुआ मौका मानते हैं।

यह समझौता कई महीनों तक चली उच्चस्तरीय राजनीतिक बातचीत के बाद वर्ष 1972 के अंत में हुआ था। इस शिखर वार्ता में इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपने मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सभी प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की थी। इसमें युद्धबंदियों की अदला-बदली के साथ-साथ पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश को मान्यता देने जैसे विषय भी शामिल थे।
आज भी शिमला के राजभवन में वह ऐतिहासिक मेज मौजूद है, जिस पर भारत और पाकिस्तान के बीच यह समझौता हुआ था। इस मेज पर आज भी दोनों देशों के झंडे लगे हैं। जब भी कोई बड़ा राजनयिक या जनप्रतिनिधि राजभवन का दौरा करता है, तो वह इस मेज को अवश्य देखता है, जो भारत-पाक रिश्तों के इतिहास का गवाह है।
वहीं, भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को रद्द करने के संकेत से पाकिस्तान में बेचैनी है। पाकिस्तान इसी के जवाब में शिमला समझौते को भी खत्म करना चाहता है। भारत ने अब तक कुल पांच बड़े फैसलों के जरिए पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने का संकेत दिया है, जिनमें सिंधु जल और शिमला समझौतों पर पुनर्विचार शामिल है।
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