Kangra: कैंसर के बढ़ते मामले: पेस्टिसाइड, फास्ट फूड और जीवनशैली बन रही मुख्य वजहें

कैंसर के मामलों में हाल के वर्षों में तेजी से वृद्धि हुई है, और डॉ. अमित राणा, कैंसर विशेषज्ञ, डॉ. राजेंद्र प्रसाद आयुर्विज्ञान महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, टांडा के अनुसार, इसके कई प्रमुख कारण हैं। मुख्य रूप से हाइड्रोकार्बन का बढ़ता दखल, अत्यधिक पेस्टिसाइड का उपयोग और फास्ट फूड पर बढ़ती निर्भरता हैं, जो विभिन्न प्रकार के कैंसर के मामलों को जन्म दे रही हैं। ये जीवनशैली और पर्यावरण से जुड़े परिवर्तन न केवल वृद्ध लोगों को, बल्कि युवा व बच्चों को भी प्रभावित कर रहे हैं।

डॉ. राणा के अनुसार, खान-पान की आदतों में बदलाव और खेती में पेस्टिसाइड्स का अत्यधिक उपयोग प्रमुख कारण हैं। पहले जहां प्राकृतिक खाद्य जैसे गोबर का उपयोग किया जाता था, वहीं आजकल रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है। ये रासायनिक पदार्थ हमारे भोजन में समा जाते हैं और कैंसर के जोखिम को बढ़ा देते हैं। पेस्टिसाइड्स के संपर्क में आने के कारण विभिन्न प्रकार के कैंसर के मामलों में वृद्धि हो रही है।

इसके अलावा, डॉ. राणा ने रक्त से संबंधित कैंसर, जैसे कि रेड और व्हाइट ब्लड सेल्स से जुड़े कैंसर, के बढ़ते मामलों की भी बात की। इस प्रकार के कैंसर में कोई ठोस गांठ नहीं उभरती, लेकिन शरीर की कोशिकाएं अपना कार्य सही से नहीं कर पातीं, जिसके कारण एनीमिया जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। डॉ. राणा ने बताया कि इस प्रकार के कैंसर में अनुवांशिक कारण भी हो सकते हैं, लेकिन 90 प्रतिशत मामले रेडिएशन और पेस्टिसाइड्स के संपर्क के कारण होते हैं, जिससे यह एक प्रमुख स्वास्थ्य संकट बन गया है।

कैंसर के बढ़ते जोखिम से बचने के लिए डॉ. राणा ने जीवनशैली में बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका कहना है कि प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ना जरूरी है, ताकि कीटनाशकों का उपयोग कम किया जा सके। इसके अलावा, घर में किचन गार्डनिंग को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि बिना पेस्टिसाइड्स के ताजगी से भरपूर सब्जियां उगाई जा सकें। इसके साथ ही, फास्ट फूड के अत्यधिक सेवन के कारण बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है, जो कैंसर के खतरे को बढ़ाती है। नियमित रूप से व्यायाम, योग और उचित जल सेवन कैंसर के जोखिम को कम करने में सहायक हो सकते हैं।

डॉ. राणा ने कैंसर की पहचान के लिए स्क्रीनिंग के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने लंग कैंसर के लिए लो डेंसिटी सीटी, प्रोस्टेट कैंसर के लिए पीएसए टेस्ट और ब्रैस्ट कैंसर के लिए मैमोग्राफी जैसे टेस्ट का उल्लेख किया। उनके अनुसार, 40 वर्ष की आयु से ऊपर की हर महिला को नियमित रूप से मैमोग्राफी करवानी चाहिए, और दो साल के अंतराल पर इस टेस्ट को फिर से करवाना चाहिए। इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति को एक महीने से लगातार बुखार, शरीर के किसी विशेष हिस्से में निरंतर दर्द, लगातार दस्त की समस्या, भोजन निगलने में कठिनाई या आवाज में बदलाव जैसे लक्षण महसूस हो रहे हों, तो उन्हें तुरंत टेस्ट करवाना चाहिए।

अंत में, डॉ. राणा ने झोलाछाप डॉक्टरों से बचने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि कैंसर के इलाज के लिए सही विशेषज्ञ का चयन करना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि कैंसर की सर्जरी, रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी के लिए अलग-अलग विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। यदि सही समय पर सही डॉक्टर से इलाज नहीं करवाया जाता, तो कैंसर की स्थिति गंभीर हो सकती है, जिससे इलाज का खर्च बढ़ता है और मरीज की परेशानी भी बढ़ जाती है।

कुल मिलाकर, कैंसर एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गई है, लेकिन सही जीवनशैली, समय पर पहचान और उपचार से कई मामलों को रोका या ठीक किया जा सकता है। इस दिशा में जागरूकता बढ़ाने और विशेषज्ञों से उचित उपचार प्राप्त करने से कैंसर से बचाव और इलाज में मदद मिल सकती है।

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