Himachal: अब शिमला में ही मिलेगा एडवांस कैंसर इलाज! IGMC में लगी करोड़ों की दो हाई-टेक मशीनें, नए साल से शुरू होगी सुविधा

कैंसर के मरीजों के लिए शिमला से बड़ी राहत की खबर है। अब इलाज और टेस्ट के लिए यहां-वहां भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। IGMC शिमला के कैंसर विभाग में पहली बार लीनियर एक्सीलेटर मशीन और PET CT स्कैन जैसी एडवांस सुविधाएं शुरू होने जा रही हैं।

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24 करोड़ रुपये की लागत वाली लीनियर एक्सीलेटर मशीन और 20.73 करोड़ रुपये की PET CT मशीन अस्पताल में स्थापित कर दी गई है। वर्तमान में इनकी एप्लीकेशन और सेफ्टी टेस्टिंग चल रही है। मशीनों की कमीशनिंग एआरईबी (Atomic Energy Regulatory Board) द्वारा की जाएगी, जिसमें करीब 6 हफ्ते लगेंगे। ऐसे में नए साल से मरीज इन दोनों सुविधाओं का लाभ ले सकेंगे।

इसके अलावा 7.50 करोड़ की सीटी सिम्युलेटर मशीन भी लग चुकी है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि लीनियर एक्सीलेटर और सीटी सिम्युलेटर—दोनों ही मशीनें IGMC कैंसर अस्पताल में पहली बार स्थापित हुई हैं।

लीनियर एक्सीलेटर मशीन क्या करती है?

कैंसर के एडवांस इलाज में लीनियर एक्सीलेटर बेहद अहम होती है। यह सीधे ट्यूमर पर रेडिएशन डालती है और सिर्फ कैंसर सेल्स को खत्म करती है, जबकि स्वस्थ कोशिकाओं पर इसका असर बेहद कम होता है।

इस मशीन से रेडिएशन ट्रीटमेंट के साथ-साथ

• एक्स-रे,

• CT स्कैन,

• IMRT और

• IBP जैसी आधुनिक जांचें भी की जा सकती हैं।

इसकी खासियत है कि रेडियोथेरेपी बिल्कुल सटीक तरीके से होती है, जिससे साइड इफेक्ट बहुत कम होते हैं।

PET CT स्कैन क्यों जरूरी है?

PET CT स्कैन शरीर के मेटाबॉलिज़्म और अंगों की कार्यक्षमता का परीक्षण करता है। इससे डॉक्टरों को समझने में मदद मिलती है कि शरीर में कैंसर कहां तक फैला है और कौन से अंग प्रभावित हैं।

अभी तक मरीजों को PET स्कैन के लिए चंडीगढ़ या निजी लैब्स जाना पड़ता था। IGMC में साल भर में करीब 2500 कैंसर मरीज आते हैं और रोजाना 2–3 मरीजों को PET स्कैन की जरूरत पड़ती है।

अब यह सुविधा यहीं उपलब्ध होगी, जिससे मरीजों को समय, पैसा और यात्रा—तीनों की बचत होगी।

कमीशनिंग के बाद मशीनें शुरू होंगी: डॉ. मनीष गुप्ता

IGMC के कैंसर अस्पताल प्रमुख और रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. मनीष गुप्ता ने बताया कि सभी मशीनें स्थापित हो चुकी हैं और अब उनकी एप्लीकेशन व सेफ्टी प्रक्रिया चल रही है।

एईआरबी द्वारा कमीशनिंग में लगभग 6 हफ्ते का समय लगेगा। इसके बाद ये मशीनें पूरी तरह वर्किंग मोड में आ जाएंगी और मरीजों को इनसे इलाज मिलना शुरू हो जाएगा।

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