हिमाचल प्रदेश की सियासत में इन दिनों भारी उथल-पुथल मची हुई है। नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कांग्रेस सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से तत्काल इस्तीफे की मांग की है। जयराम ठाकुर का आरोप है कि हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के चीफ इंजीनियर विमल नेगी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े हैं।
शिमला में पत्रकार वार्ता के दौरान जयराम ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री ने विधानसभा में दो बार यह झूठ बोला कि नेगी परिवार सीबीआई जांच नहीं चाहता, जबकि हाईकोर्ट ने स्वयं इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार जानबूझ कर मामले को सीबीआई को नहीं सौंप रही है, ताकि सबूतों से छेड़छाड़ की जा सके।
ठाकुर ने ऊना के पेखुवाल में बने सोलर पावर प्लांट को इस भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा उदाहरण बताया और कहा कि सरकार ने नियमों के विपरीत कंपनी से 22 करोड़ रुपए लेने की बजाय उसे 13 करोड़ रुपए दे दिए। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने इस प्लांट का कंप्लीशन सर्टिफिकेट लेने के लिए विमल नेगी पर जबरन दबाव डाला गया।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है क्योंकि सरकार अब डीजीपी, मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह और पूर्व डीजीपी जैसे उच्च अधिकारियों के खिलाफ ही मोर्चा खोल रही है। यह स्थिति दर्शाती है कि सरकार की बात अब उसके अधिकारी भी नहीं मान रहे हैं।
उन्होंने बताया कि शिमला के एसपी संजीव गांधी ने हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद सीबीआई को दस्तावेज देने से मना कर दिया है, जो न केवल अनुशासनहीनता है बल्कि प्रदेश में पुलिस व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती है। साथ ही यह भी खुलासा किया कि एसपी संजीव गांधी ने भाजपा विधायक सुधीर शर्मा को आपराधिक मानहानि का नोटिस भेजा है।
जयराम ठाकुर की प्रमुख मांगें:
- रिकॉर्ड से छेड़छाड़ करने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो।
- जिन कांग्रेस नेताओं को संरक्षण मिला है, उनके खिलाफ भी जांच हो।
- पैन ड्राइव को फॉर्मेट करने और उसे ले जाने के पीछे की मंशा की जांच हो।
- लाइन हाजिर पंकज की सुरक्षा की मांग क्यों की गई, इसका खुलासा हो।
- सीबीआई जांच में किसी हिमाचल पुलिस अधिकारी को शामिल न किया जाए।
- सबसे बड़ा सवाल: क्या विमल नेगी की मौत आत्महत्या थी या हत्या?
जयराम ठाकुर के इन आरोपों और मांगों से हिमाचल की राजनीति में उबाल आ गया है। यह मामला अब सिर्फ एक संदिग्ध मौत का नहीं, बल्कि सरकार की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करने वाला बन चुका है। अब देखना होगा कि मुख्यमंत्री सुक्खू और उनकी सरकार इस संकट से कैसे निपटती है।
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