हिमाचल प्रदेश में ‘मुर्गा प्रकरण’ को लेकर सियासी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस मामले में धर्मशाला के विधायक सुधीर शर्मा समेत 6 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है। विपक्षी दल बीजेपी ने इसे ‘शर्मनाक’ कदम बताते हुए सरकार पर निशाना साधा है। आखिर यह पूरा मामला क्या है और क्यों इसने राजनीतिक हलचल मचा दी? आइए जानते हैं पूरी कहानी।
मामला कैसे शुरू हुआ?
यह विवाद 13 दिसंबर 2023 को शुरू हुआ, जब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने शिमला जिले के कुपवी इलाके के टिक्कर गांव का दौरा किया। यहां एक कांग्रेस कार्यकर्ता के घर पर डिनर आयोजित किया गया था। इस डिनर का एक मैन्यू सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें कथित तौर पर पहाड़ी मुर्गे का जिक्र था।
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि उन्होंने मीट खाने से इनकार कर दिया था। बावजूद इसके, सोशल मीडिया पर उनके डिनर का वीडियो और मैन्यू खूब वायरल हुआ।
फर्जी मैन्यू से विवाद बढ़ा
कुछ दिन बाद एक फर्जी मैन्यू वायरल होने लगा, जिसमें दावा किया गया कि मुख्यमंत्री के डिनर में मुर्गा परोसा गया था। इस फर्जी मैन्यू के खिलाफ कुपवी की कुलग पंचायत की प्रधान सुमन चौहान और नीटू परमार ने शिकायत दर्ज करवाई। उनका आरोप था कि इस दुष्प्रचार से इलाके की पारंपरिक संस्कृति को ठेस पहुंची है।
शिकायत के आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 353 और 356 के तहत केस दर्ज किया। इस मामले में धर्मशाला के कांग्रेस विधायक सुधीर शर्मा और कुछ पत्रकारों के नाम शामिल हैं।
विरोध और सियासी हमला
इस एफआईआर के बाद हिमाचल की सियासत गर्मा गई। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के नेतृत्व में बीजेपी विधायकों ने विधानसभा परिसर में प्रदर्शन किया। उन्होंने मुर्गे की तस्वीर वाले पोस्टर दिखाते हुए सरकार पर विरोधियों को डराने का आरोप लगाया।
सुधीर शर्मा का बयान
विधायक सुधीर शर्मा ने इस एफआईआर को ‘डर के कारण की गई कार्रवाई’ बताया। उन्होंने मांग की कि अगर मैन्यू में मुर्गे का उल्लेख था, तो उसकी सच्चाई की जांच होनी चाहिए।
सरकार का पक्ष
वहीं, सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार का कहना है कि फर्जी मैन्यू वायरल कर सरकार की छवि खराब करने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा कि कार्रवाई कानून के तहत की गई है और इसमें कोई राजनीति नहीं है।
क्या कहता है कानून?
इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (लोक सेवक पर हमला) और धारा 356 (दंगे की साजिश) के तहत मामला दर्ज हुआ है। हालांकि, विपक्ष ने इस पर सवाल उठाते हुए वन्यजीव अधिनियम के तहत जांच की मांग की है।
निष्कर्ष
यह ‘मुर्गा प्रकरण’ केवल एक वायरल मैन्यू का विवाद नहीं है, बल्कि हिमाचल की राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच बढ़ते तनाव का प्रतीक बन गया है। आगामी चुनावों में इस मुद्दे की गूंज सुनाई दे सकती है।
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