
हिमाचल प्रदेश के स्कूल शिक्षा बोर्ड की लापरवाही एक मासूम छात्रा की जिंदगी पर भारी पड़ गई है। इलाके की एक विधवा महिला, जो ग्राम पंचायत में मिड-डे मील वर्कर के रूप में कार्यरत है, उसकी बेटी सीनियर सैकेंडरी स्कूल पाहड़ा में पढ़ती थी। हाल ही में प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा घोषित परीक्षा परिणाम में उस छात्रा को फेल घोषित कर दिया गया। इस नतीजे से आहत होकर छात्रा ने घर में रखी कोई जहरीली दवा निगल ली। बाद में जब अंग्रेज़ी विषय का पेपर दोबारा जांचा गया, तो उसे पास घोषित कर दिया गया, लेकिन तब तक छात्रा की हालत गंभीर हो चुकी थी।
परिवार के अनुसार, छात्रा को पहले पालमपुर सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहां दो दिन इलाज के बाद उसे रैफर कर दिया गया। इसके बाद उसकी मां उसे हमीरपुर के सिविल अस्पताल ले गई, क्योंकि वहां उनके कुछ रिश्तेदार काम करते हैं। लेकिन वहां एंडोस्कोपी की सुविधा न होने के चलते उसे टांडा अस्पताल ले जाया गया, जहां फिलहाल वह भर्ती है और उसकी टेस्ट रिपोर्ट आना बाकी है।
छात्रा की मां ने बताया कि वह मात्र 4000 रुपए में तीन बेटियों का पालन-पोषण कर रही हैं। उनके पति का निधन 18 साल पहले ही हो गया था और दो बेटियों की देखरेख उनके रिश्तेदार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर अब बोर्ड ने बच्ची को पास भी कर दिया है, तो भी कोई मायने नहीं रह गया, क्योंकि उसकी हालत बेहद नाज़ुक है और उसके ठीक होने की उम्मीद बहुत कम है।
इस पूरे मामले में शिक्षा बोर्ड की गलती ने एक गरीब और कमजोर परिवार को गहरे दुख में डाल दिया है। यह घटना न सिर्फ बोर्ड की लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि एक छोटे से फैसले की कितनी बड़ी कीमत एक मासूम और उसका परिवार चुका सकता है।
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