मंडी: हिमाचल प्रदेश की सराज घाटी में 18 वर्षों के बाद भाटकीहार के गढ़पति छांजणु देवता अपनी ऐतिहासिक परिक्रमा पर निकले हैं। देवता इस बार 9 गढ़ों की परिक्रमा कर आने वाली विपदाओं से बचाव का सूत्र बांध रहे हैं।
शनिवार को सैंकड़ों देवलुओं ने घाटलूगढ़ की सीधी चढ़ाई से देवरथ को रस्सियों की मदद से सुरक्षित पार किया। तीन घंटे की कठिन मशक्कत के बाद देवता को पहाड़ों के खतरनाक रास्तों से पार कराना संभव हुआ। इस दौरान देवलुओं ने अपनी साहसिक क्षमता और सामूहिक समर्पण का परिचय दिया।
देवलुओं सनी ठाकुर, हेमराज, गोपी चंद, सुरेश ठाकुर और विशाल ने बताया कि सामान्य परिस्थितियों में देवरथ को उठाने के लिए दो लोग पर्याप्त होते हैं, लेकिन इस चुनौतीपूर्ण मार्ग पर चार-चार लोग आगे और पीछे बैठे थे। परिक्रमा के दौरान गांव-गांव में श्रद्धालुओं ने देवता का अखरोट और पुष्प वर्षा कर भव्य स्वागत किया।
देवता छांजणु ने इस दौरान प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, देव स्थलों की पवित्रता और देव नीति के पालन का आदेश मानव जाति को दिया। देवता ने स्पष्ट किया कि यदि देव नियमों का पालन नहीं होगा, तो आपदा को रोक पाना मुश्किल होगा।
देवता कमेटी के प्रधान बीरबल ने बताया कि यह ऐतिहासिक परिक्रमा 18 दिनों तक चली, जिसमें देवलुओं ने अनेक कठिनाइयों को पार करते हुए साहस और समर्पण दिखाया। परिक्रमा 10 नवम्बर को भाटकीहार से लाव-लश्कर के साथ शुरू हुई थी।
गांव-गांव पहुंचे प्रभावितों ने देवता से आशीर्वाद मांगा और अपने आशियानों को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। प्रभावित भीम सेन और झाबे राम ने कहा कि देवता ने मानव जाति को देव नियमों का पालन करने के निर्देश दिए हैं, तभी आपदा देवभूमि से दूर रहेगी।
यह परिक्रमा न केवल आध्यात्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि स्थानीय संस्कृति और प्राकृतिक संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का भी एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
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