हिमाचल प्रदेश के शिमला स्थित आईजीएमसी अस्पताल में स्क्रब टाइफस से पहली बार मौत दर्ज हुई है। 34 वर्षीय एक महिला को सिविल अस्पताल रोहड़ू से सैप्सिस और सैप्टिक शॉक के कारण रैफर किया गया था। जांच में महिला स्क्रब टाइफस पॉजिटिव पाई गई। इस बीमारी से पीड़ित महिला एमआईसीयू में भर्ती थी, लेकिन शनिवार को मिली रिपोर्ट के बाद रविवार तड़के करीब 3 बजे उसने दम तोड़ दिया।
अब तक आईजीएमसी में स्क्रब टाइफस के कुल 7 मामले पॉजिटिव पाए गए हैं, जिनमें यह पहली मौत है। स्वास्थ्य विभाग ने लोगों को सतर्क रहने की सलाह दी है। प्रदेश में 15 जून से 15 अक्टूबर तक बरसाती मौसम रहता है, जो खासकर किसानों के लिए चुनौती भरा होता है। इस दौरान खेतों में काम करते वक्त अगर सावधानी नहीं बरती गई तो जानलेवा स्क्रब टाइफस हो सकता है।

डॉक्टरों के अनुसार, स्क्रब टाइफस जिसे बुश टाइफस भी कहा जाता है, एक संक्रामक बीमारी है, जो ओरिएंटिया त्सुत्सुगामुशी नामक बैक्टीरिया से फैलती है। यह बीमारी चिगर नामक कीड़े के काटने से होती है। काटे जाने के 10-12 दिन बाद बुखार, सिर दर्द और शरीर में दर्द जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। समय पर इलाज न मिलने पर यह बीमारी सैप्सिस और सैप्टिक शॉक जैसी गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकती है।
सैप्सिस वह स्थिति है जब शरीर संक्रमण के प्रति असामान्य प्रतिक्रिया करता है और अंगों को नुकसान पहुंचाता है। सैप्टिक शॉक इसका सबसे खतरनाक रूप है, जिसमें रक्तचाप इतना नीचे चला जाता है कि अंगों तक रक्त पहुंचना बंद हो जाता है, जो जानलेवा साबित हो सकता है।
स्क्रब टाइफस के दौरान मरीज को तेज बुखार होता है, जो 104 से 105 डिग्री तक पहुंच सकता है। इसलिए स्वास्थ्य विभाग ने लोगों से अपील की है कि वे अपने घर और आसपास के माहौल को साफ-सुथरा रखें, कीटनाशक का छिड़काव करें और साफ-सफाई का खास ध्यान रखें।

खासकर बरसात के मौसम में सतर्कता ही इस बीमारी से बचाव का सबसे बड़ा हथियार है।
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